तिरंगे की कसम हमको, तिरंगा झुक नहीं सकता ।
उठा दुश्मन की खातिर जो, कदम वो रुक नहीं सकता ॥
तिरंगे को भगत सिंह ने, सजाया खून से अपने ।
तिरंगा हाथ में लेकर, बने जय हिंद के सपने ॥
अगर शान-ए-तिरंगा पर, कोई दुश्मन नज़र डाले ।
शपथ है पूर्वजों की, खाक में उसको मिला डाले ॥
नहीं कुर्बानियां भूले है, बिस्मिल की, जवाहर की ।
अभी तक आ रही खुशबु, है झासी के महावर की ॥
नहीं सुखा लहू अब तक, हिमालय की भुजावों ।
नहीं ठंडा हुवा है रक्त, अब तक रह्नुमायों का ॥
निशां आज़ाद भारत का, तिरंगा है तिरंगा ।
हमारे देश की है शान, लहराता तिरंगा ॥
भले ही हिंद के रणबाकुरे, गिन गिन के मर जाये ।
मगर हिमराज पे लहराएगा, प्यारा तिरंगा ॥
(११-०८-१९९९)
समयानुकूल अच्छी कविता का प्रस्तुतीकरण।
ReplyDeleteसमसामयिक अच्छी प्रस्तुति
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