Sunday, September 27, 2009

यहाँ अब चंद लोगो के लिए

कई सारे वसीमो ने मुझे घर पर बुलाया था ।
बड़े ही नाज़ से उस नाजनी ने घर सजाया था ॥
बड़ी दुस्वारियो में कल वो मौका फिर गवां आया ।
बड़ी मुद्दत से जो मौका हमारे हाथ आया था ॥
मेरे पीछे कई लोगो ने कल मजमा लगाया था ।
कि जिस दम हमने आफिस को कदम अपना बढाया था ।।
मैं नज़रे फेर कर उस रस्ते को पार कर आया ।
मेरी खातिर जहाँ पर उसने ख़ुद दामन बिछाया था ॥
दिखा था चाँद रौशन चांदनी बिखरी मगर क्या है ।
उठाई थी नज़र मैंने कि कुछ उम्मीद होती है ।।
दशहरे की खुशी हम साथ मिल कर के मनायेगे ।
मगर अब चंद लोगो की यहाँ पर ईद होती है ॥

Friday, September 11, 2009

बड़ा अरमान था

बड़ा अरमान था मुझको की मै तुम पर ग़ज़ल लिख दू ।
खुली जुल्फे घटा कह दू गुलाबी लव कवल लिख दू ॥
बिठा लू सामने अपने करुँ कुछ गुफ्तगुं दिल की ।
बुला लू चांदनी रोशन तुम्हे जीनत महल लिख दू ॥
मगर तुम तो समंदर हो ग़ज़ल बनती बिगड़ती है ।
अब तुम पर क्या ग़ज़ल कह दू अब तुम पर क्या ग़ज़ल लिख दू ॥

Tuesday, September 8, 2009

ये कैसे आई लव पे लाली गुलाब की ।
क्या झुक गई थी लव पे डाली गुलाब की ।
जर्बान रुक गई अरे जब लव पे बल पड़े ।
माहेशिकस्त बन के वो छत पर निकल पड़े ।
हम बुत से बन गए है और बुत है चल पड़े
खालिश खलिश में पड़ गया गुलनार कौन है ।
शब् आखिरे में निकला सरकार कौन है ।
हर गाम चुस्त था फिर कैसे फिसल पड़े ।
माहेशिकस्त बन के वो छत पर निकल पड़े ।
हम बुत से बन गए है और बुत है चल पड़े ।