मना ली एक दिन पहले ही मैंने, ईद पूछो क्यूँ ।
अरे ! वो दूसरी मंजिल पे, मैंने चाँद देखा था ॥
बड़ा ही खूबसूरत था, बड़ी थी सादगी उसमे ।
बड़े नजदीक थे उसके, 'अनिल' जब चाँद देखा था ॥
Tuesday, August 30, 2011
Wednesday, August 24, 2011
जश्ने नौरोज़ के
जश्ने नौरोज़ के दिन आपको आना होगा ।
हटा के ज़ुल्फ़ महताब दिखाना होगा ॥
रुख को परदे में छुपाने की आदत नहीं अच्छी ।
हटा नकाब तुम्हे बज़्म में आना होगा ॥
लवों को सी के न बैठो खुदा के वास्ते तुम ।
सरे महफ़िल में तुम्हे नज़्म सुनाना होगा ॥
फुल जुल्फों में पिरोये है क्या कयामत है ।
आपको रोज़ इस जलवे को दिखाना होगा ॥
कही ऐसा न हो मिल पाए न सहर मुझको ।
आखिरे शब् में रूखे चाँद दिखाना होगा ॥
मैकशे जाने की आदत ख़राब लगती है ।
लाले मुज़ब लव का पैमाना पिलाना होगा ॥
जाने निगार रूबरू होने में खलिश है ।
निगाहे नाज़ से मुस्कान पे आना होगा ॥
ज़रिह बन के रह गयी है जिंदगी मेरी ।
सजदे में अनिल तुमको भी आना होगा ॥
( ०२ -०९ - १९९९ )
हटा के ज़ुल्फ़ महताब दिखाना होगा ॥
रुख को परदे में छुपाने की आदत नहीं अच्छी ।
हटा नकाब तुम्हे बज़्म में आना होगा ॥
लवों को सी के न बैठो खुदा के वास्ते तुम ।
सरे महफ़िल में तुम्हे नज़्म सुनाना होगा ॥
फुल जुल्फों में पिरोये है क्या कयामत है ।
आपको रोज़ इस जलवे को दिखाना होगा ॥
कही ऐसा न हो मिल पाए न सहर मुझको ।
आखिरे शब् में रूखे चाँद दिखाना होगा ॥
मैकशे जाने की आदत ख़राब लगती है ।
लाले मुज़ब लव का पैमाना पिलाना होगा ॥
जाने निगार रूबरू होने में खलिश है ।
निगाहे नाज़ से मुस्कान पे आना होगा ॥
ज़रिह बन के रह गयी है जिंदगी मेरी ।
सजदे में अनिल तुमको भी आना होगा ॥
( ०२ -०९ - १९९९ )
हम इश्क महफ़िलो
यूँ तो रोते है हम शामों सहर लेकिन ।
हम अश्क सरे आम बहाया नहीं करते ॥
ये उनकी खूं है देकर जख्म हम पे मुस्कुराते है ।
जख्मों पे हम भी मरहम लगाया नहीं करते ॥
निगाहें परवरिश के वास्ते बैठे तो कब तलक ।
पत्थर दिल तब्बसुम पे आया नहीं करते ॥
फितरतों में उनकी शामिल है क़त्ल करना ।
हम खूने जिगर अपना दिखाया नहीं करते ॥
उनकी तो ये आदत है मिल करके भूल जाना ।
हम लव से लेके नाम भुलाया नहीं करते ॥
हम दिल में बसाते है अपने यार की सूरत ।
तस्वीर आइनों में सजाया नहीं करते ॥
वो घर उजाड़ सबकी पिलाते शराब है ।
हम पीने कभी मैकदे जाया नहीं करते ॥
दुनिया से जी है भर गया अब जी के क्या करे ।
हम लाशों का मुज्जसम बनाया नहीं करते ॥
ये जिंदगी ही बोझ मेरे दोस्तों सुनो ।
हम कांधों पे अपने बोझ उठाया नहीं करते ॥
(१५ - ०८ -१९९९ )
हम अश्क सरे आम बहाया नहीं करते ॥
ये उनकी खूं है देकर जख्म हम पे मुस्कुराते है ।
जख्मों पे हम भी मरहम लगाया नहीं करते ॥
निगाहें परवरिश के वास्ते बैठे तो कब तलक ।
पत्थर दिल तब्बसुम पे आया नहीं करते ॥
फितरतों में उनकी शामिल है क़त्ल करना ।
हम खूने जिगर अपना दिखाया नहीं करते ॥
उनकी तो ये आदत है मिल करके भूल जाना ।
हम लव से लेके नाम भुलाया नहीं करते ॥
हम दिल में बसाते है अपने यार की सूरत ।
तस्वीर आइनों में सजाया नहीं करते ॥
वो घर उजाड़ सबकी पिलाते शराब है ।
हम पीने कभी मैकदे जाया नहीं करते ॥
दुनिया से जी है भर गया अब जी के क्या करे ।
हम लाशों का मुज्जसम बनाया नहीं करते ॥
ये जिंदगी ही बोझ मेरे दोस्तों सुनो ।
हम कांधों पे अपने बोझ उठाया नहीं करते ॥
(१५ - ०८ -१९९९ )
Tuesday, August 23, 2011
हमने थे होश खोये
हमने थे होश खोये, उनके रूबरू होके ।
उनके भी कदम बहके, तो क्या मेरी खता है ॥
परदे में रुख छिपाए है, ये कैसा प्यार है ।
पल्लू जो सर से सरका, तो क्या मेरी खता है ॥
मेहँदी लगायी पैरों में, तो फूल हँस पड़े ।
बोसा लिया था फर्श ने, तो क्या मेरी खता है ॥
बन चौहदवीं का चाँद, न निकला करो छत पर ।
टकराए कोई बादल, तो क्या मेरी खता है ॥
बिखराई तुमने जुल्फे, मै समझा कि चाँद डूबा ।
तेरा साया मैंने देखा, तो क्या मेरी खता है ॥
लव खुलते ही गिरे थे, फूलों के कई गुच्छे ।
एक मैंने भी उठाया, तो क्या मेरी खता है ॥
ऐसे न सज सवंर कर, तुम अंजुमन में निकलो ।
टकराए कोई आशिक, तो क्या मेरी खता है ॥
तेरे लव को देख कर के, भवरें है कई मचले ।
तेरे लव पे आके बैठे, तो क्या मेरी खता है ॥
अंगड़ाई ना लिया करो, तुमको कसम हमारी ।
फिर तुम ना मुझसे कहना, कि ये मेरी खता है ॥
(०३ - ०४ - २००० )
उनके भी कदम बहके, तो क्या मेरी खता है ॥
परदे में रुख छिपाए है, ये कैसा प्यार है ।
पल्लू जो सर से सरका, तो क्या मेरी खता है ॥
मेहँदी लगायी पैरों में, तो फूल हँस पड़े ।
बोसा लिया था फर्श ने, तो क्या मेरी खता है ॥
बन चौहदवीं का चाँद, न निकला करो छत पर ।
टकराए कोई बादल, तो क्या मेरी खता है ॥
बिखराई तुमने जुल्फे, मै समझा कि चाँद डूबा ।
तेरा साया मैंने देखा, तो क्या मेरी खता है ॥
लव खुलते ही गिरे थे, फूलों के कई गुच्छे ।
एक मैंने भी उठाया, तो क्या मेरी खता है ॥
ऐसे न सज सवंर कर, तुम अंजुमन में निकलो ।
टकराए कोई आशिक, तो क्या मेरी खता है ॥
तेरे लव को देख कर के, भवरें है कई मचले ।
तेरे लव पे आके बैठे, तो क्या मेरी खता है ॥
अंगड़ाई ना लिया करो, तुमको कसम हमारी ।
फिर तुम ना मुझसे कहना, कि ये मेरी खता है ॥
(०३ - ०४ - २००० )
हमने थी कसम खायी
हमने थी कसम खायी, तुमसे न मिलेगे ।
गर ख्वाब में मिल जाएँ, तो कोई क्या करे ॥
पीने कि है पाबन्दी, हरगिज न पियेंगे ।
जब खुद ही जाम छलके, तो कोई क्या करे ॥
उनकी ये आरज़ू थी, हम घर न रहेगे ।
जब दिल ही आशियाँ हो, तो कोई क्या करे ॥
अपनी ये तमन्ना थी, कुछ गुफ्तगू करेगे।
चिलमन न उठा शब् भर, तो कोई क्या करे ॥
सोचा था हम न रुसवां, दिलदार को क़रेगे ।
परवान मोहब्बत चढ़ी, तो कोई क्या करे ॥
मालिक मेरे ये कैसी, उलझन में फंस गया ।
उलझन उलझती जाये, तो कोई क्या करे ॥
शिकवा करेगें किस से, ए मेरे हमनशीं ।
जब जिंदगी हो कातिल, तो कोई क्या करे ॥
हमने किया है वादा, उनसे इंतज़ार का ।
गर वो ही रूठ जाये, तो कोई क्या करे ॥
हम दास्ताँ सुनाये जाकर, किसे 'अनिल' ।
जब हम ही दास्ताँ है, तो कोई क्या करे ॥
हमने थी कसम खायी, कि हम कुछ न कहगे ।
आहिस्ता खुल गए लव, तो कोई क्या करे ॥
(०३-०४-२००० )
गर ख्वाब में मिल जाएँ, तो कोई क्या करे ॥
पीने कि है पाबन्दी, हरगिज न पियेंगे ।
जब खुद ही जाम छलके, तो कोई क्या करे ॥
उनकी ये आरज़ू थी, हम घर न रहेगे ।
जब दिल ही आशियाँ हो, तो कोई क्या करे ॥
अपनी ये तमन्ना थी, कुछ गुफ्तगू करेगे।
चिलमन न उठा शब् भर, तो कोई क्या करे ॥
सोचा था हम न रुसवां, दिलदार को क़रेगे ।
परवान मोहब्बत चढ़ी, तो कोई क्या करे ॥
मालिक मेरे ये कैसी, उलझन में फंस गया ।
उलझन उलझती जाये, तो कोई क्या करे ॥
शिकवा करेगें किस से, ए मेरे हमनशीं ।
जब जिंदगी हो कातिल, तो कोई क्या करे ॥
हमने किया है वादा, उनसे इंतज़ार का ।
गर वो ही रूठ जाये, तो कोई क्या करे ॥
हम दास्ताँ सुनाये जाकर, किसे 'अनिल' ।
जब हम ही दास्ताँ है, तो कोई क्या करे ॥
हमने थी कसम खायी, कि हम कुछ न कहगे ।
आहिस्ता खुल गए लव, तो कोई क्या करे ॥
(०३-०४-२००० )
Wednesday, August 17, 2011
एक मुद्दत से इंतजार है
एक मुद्दत से इंतजार है, कुछ बोलेंगे ।
देर से ही सही गुलाब से, लव खोलेंगे ॥
कुछ तो एहसास करते, देखते, मुस्कुरा देते ।
फिर से जुल्फों को, अपने चेहरे पे गिरा देते ॥
हम तो कब से खड़े है राहों में, इंतज़ार है ।
न जाने क्यों ये दिल, इतना बेकरार है ॥
सोचते है जो बची है, वो गुज़र जाये ।
मै चलू उसपे, जो डगर तेरे घर जाये ॥
ये इतनी देर, बहुत देर हो न जाये कही ।
मेरी किस्मत हो, ये किस्मत खो न जाये कहीं ॥
देर से ही सही गुलाब से, लव खोलेंगे ॥
कुछ तो एहसास करते, देखते, मुस्कुरा देते ।
फिर से जुल्फों को, अपने चेहरे पे गिरा देते ॥
हम तो कब से खड़े है राहों में, इंतज़ार है ।
न जाने क्यों ये दिल, इतना बेकरार है ॥
सोचते है जो बची है, वो गुज़र जाये ।
मै चलू उसपे, जो डगर तेरे घर जाये ॥
ये इतनी देर, बहुत देर हो न जाये कही ।
मेरी किस्मत हो, ये किस्मत खो न जाये कहीं ॥
Sunday, August 14, 2011
माँ का श्रृंगार
माँग में भरना धूल हिंद की, जिसमे रवि की लाली हो ।
घुघराले बालों में बेंदी, चाँद सितारा वाली हो ॥
माथे पे बिंदिया सूरज की, जिसमे चिन्ह शेर का हो ।
आँखों में पुष्कर तीरथ और, वक्ष्स्तल अजमेर का हो ॥
काबा हो जिसकी पलकों पर, जिसका ह्रदय शिवाला हो ।
वाणी गीता सी पवन हो, हाथ में मणि की माला हो ॥
बनी तिरंगे की चूनर, और सिर पर मुकुट गगन का हो ।
भगत सिंग सा बासंती तन, जिसमे रंग लगन का हो ॥
चोली में चरखा बनवाना, जिस पर पड़ा दुशाला हो ।
ताजमहल से सुन्दर तन पर, कपड़ा खादी वाला हो ॥
चक्र करधनी में बनवाना, कर में विजय तिरंगा हो ।
धवल वेग जिसका, जिसकी बाहों में पवन गंगा हो ॥
आँचल में भर हिंदी सागर, पायल पटना की लाना ।
वीर जवाहर का रंग भी, तुम सभी जगह पर भरवाना ॥
आँखों में झरिया का काजल, नथ चित्तौड़ किले की हो ।
शुभ्र शीश पर नग हिमगिरि, चूड़ामणि बंग जिले की हो ॥
घंघरा गाँधी वाला जिसमे, वन्देमात्रम बूटा हो ।
लाल बहादुर का रंग भरना, कोई भाग न छूटा हो ॥
सारी बनी बनारस की और, ज़री हैदराबादी हो ।
हर धागा जिसका बतलाता, सौ करोड़ आबादी हो ॥
अर्जुन सी हुँकार, तांडव झासी की रानी जैसा ।
रक्षक जिसके वीर शिवाजी, उस सरहद को डर कैसा ॥
नलवे का रंग गहरा कर, संगीन थमाना बाहों में ।
फूल तोड़ लखनऊ शहर के, बिखरा देना राहों में ॥
कर श्रृंगार सजाकर उसको, कर देना तुम सिंह सवार।
तब जाकर कहलाएगी वो, भारत भू का शुभ अवतार ॥
(१५ अगस्त १९९९ - दिन रविवार )
घुघराले बालों में बेंदी, चाँद सितारा वाली हो ॥
माथे पे बिंदिया सूरज की, जिसमे चिन्ह शेर का हो ।
आँखों में पुष्कर तीरथ और, वक्ष्स्तल अजमेर का हो ॥
काबा हो जिसकी पलकों पर, जिसका ह्रदय शिवाला हो ।
वाणी गीता सी पवन हो, हाथ में मणि की माला हो ॥
बनी तिरंगे की चूनर, और सिर पर मुकुट गगन का हो ।
भगत सिंग सा बासंती तन, जिसमे रंग लगन का हो ॥
चोली में चरखा बनवाना, जिस पर पड़ा दुशाला हो ।
ताजमहल से सुन्दर तन पर, कपड़ा खादी वाला हो ॥
चक्र करधनी में बनवाना, कर में विजय तिरंगा हो ।
धवल वेग जिसका, जिसकी बाहों में पवन गंगा हो ॥
आँचल में भर हिंदी सागर, पायल पटना की लाना ।
वीर जवाहर का रंग भी, तुम सभी जगह पर भरवाना ॥
आँखों में झरिया का काजल, नथ चित्तौड़ किले की हो ।
शुभ्र शीश पर नग हिमगिरि, चूड़ामणि बंग जिले की हो ॥
घंघरा गाँधी वाला जिसमे, वन्देमात्रम बूटा हो ।
लाल बहादुर का रंग भरना, कोई भाग न छूटा हो ॥
सारी बनी बनारस की और, ज़री हैदराबादी हो ।
हर धागा जिसका बतलाता, सौ करोड़ आबादी हो ॥
अर्जुन सी हुँकार, तांडव झासी की रानी जैसा ।
रक्षक जिसके वीर शिवाजी, उस सरहद को डर कैसा ॥
नलवे का रंग गहरा कर, संगीन थमाना बाहों में ।
फूल तोड़ लखनऊ शहर के, बिखरा देना राहों में ॥
कर श्रृंगार सजाकर उसको, कर देना तुम सिंह सवार।
तब जाकर कहलाएगी वो, भारत भू का शुभ अवतार ॥
(१५ अगस्त १९९९ - दिन रविवार )
चलो मस्त तुम तो धरा डोल देगी
चलो मस्त तुम तो धरा डोल देगी ।
अगर तुम हुंकारों चिता बोल देगी ॥
बनो निश्चयी प्रात को वश में कर लो ।
बनो भास्कर रात को वश में कर लो ॥
कि तुम भोर के दीप बनकर न बैठो ।
कि झिलमिल सितारों को आँचल में भर लो ॥
बनो विक्रमी एक संवत चला दो ।
कि तुम एक होली नयी फिर जला दो ॥
अगर मौन बन करके आघात खाए ।
तो धिक्कार तुम इस धरा पे क्यों आये ॥
बनो साहसी सेतु सागर पे बाँधो ।
समुन्दर कि लहरों को तुम दास कर लो ॥
धरा तो तुम्हारे बहुत सन्निकट है ।
गगन, रश्मियाँ, रवि को तुम पास कर लो ॥
तो तुम युग प्रवर्तक कि मूरत बनोगे ।
तो तुम मेरु गिरि कि तरह फिर तनोगे ॥
स्वयं आके घन तुम पे बरसायेगा जल ।
है बहुमूल्य तेरा दिवस, रात्रि, क्षण, पल ॥
कि पुरुषत्व ललकार पर ना भुलाना ।
कि अमरत्व जीवन में लेकर न आना ॥
तभी कौरवो को पराजित करोगे ।
तभी तीर तुम तरकशो में भरोगे ॥
कि हाथो से नित तू प्रलय का सृजन कर ।
कि फिर से कमंडल में संजीवनी भर ॥
कि तू भाग्य का जा स्वयं बन विधाता ।
तो फिर देखना कौन सम्मुख है आता ॥
(०५-०६-२०००)
अगर तुम हुंकारों चिता बोल देगी ॥
बनो निश्चयी प्रात को वश में कर लो ।
बनो भास्कर रात को वश में कर लो ॥
कि तुम भोर के दीप बनकर न बैठो ।
कि झिलमिल सितारों को आँचल में भर लो ॥
बनो विक्रमी एक संवत चला दो ।
कि तुम एक होली नयी फिर जला दो ॥
अगर मौन बन करके आघात खाए ।
तो धिक्कार तुम इस धरा पे क्यों आये ॥
बनो साहसी सेतु सागर पे बाँधो ।
समुन्दर कि लहरों को तुम दास कर लो ॥
धरा तो तुम्हारे बहुत सन्निकट है ।
गगन, रश्मियाँ, रवि को तुम पास कर लो ॥
तो तुम युग प्रवर्तक कि मूरत बनोगे ।
तो तुम मेरु गिरि कि तरह फिर तनोगे ॥
स्वयं आके घन तुम पे बरसायेगा जल ।
है बहुमूल्य तेरा दिवस, रात्रि, क्षण, पल ॥
कि पुरुषत्व ललकार पर ना भुलाना ।
कि अमरत्व जीवन में लेकर न आना ॥
तभी कौरवो को पराजित करोगे ।
तभी तीर तुम तरकशो में भरोगे ॥
कि हाथो से नित तू प्रलय का सृजन कर ।
कि फिर से कमंडल में संजीवनी भर ॥
कि तू भाग्य का जा स्वयं बन विधाता ।
तो फिर देखना कौन सम्मुख है आता ॥
(०५-०६-२०००)
शहीदों को झुकावो सिर
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने ये गया है ।
लगावो धूल को सिर पर, वतन में चैन आया है ॥
वो बिस्मिल थे, भगत सिंह थे, ज़मीं को दे लहू अपना ।
जिन्होंने वर्षो देखा था, अनोखे देश का सपना ॥
फूल सर का अशफ़ाक ने, इस पर चढ़ाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने या गया है ॥
शहीदों ने सजायी माँग माँ की, खून देकर के ।
चुका सकते नहीं एहसान, ये सौ बार भी मर के ॥
खबर तुमको नहीं हमने क्या खोया और पाया है ।
बहुत ही बार हमको, दुश्मनों ने आजमाया है ॥
कसम हमको मरे हम, देश की खातिर वतन वालो ।
तुम्हे आवाज़ माँ देती है तुम सीमाए संभालो ॥
सिकंदर को हमी पोरश ने, झेलम से भगाया है ।
शहीदों को झुकावो सर, जवानों ने ये गया है ॥
हमे है दोस्त प्यारे साथ में, दुश्मन भी प्यारे है ।
हमारी दोस्ती और दुश्मनी, के नुस्खे प्यारे है ॥
करोगे प्यार से बातें, करेगें बात हम प्यारी ।
मगर सुन लो हमे चेतावनी, बिलकुल नहीं प्यारी ॥
अरोड़ा ने नियाजी को, सबक अच्छा सिखाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने ये गया है ॥
(१२-०२-१९९९)
लगावो धूल को सिर पर, वतन में चैन आया है ॥
वो बिस्मिल थे, भगत सिंह थे, ज़मीं को दे लहू अपना ।
जिन्होंने वर्षो देखा था, अनोखे देश का सपना ॥
फूल सर का अशफ़ाक ने, इस पर चढ़ाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने या गया है ॥
शहीदों ने सजायी माँग माँ की, खून देकर के ।
चुका सकते नहीं एहसान, ये सौ बार भी मर के ॥
खबर तुमको नहीं हमने क्या खोया और पाया है ।
बहुत ही बार हमको, दुश्मनों ने आजमाया है ॥
कसम हमको मरे हम, देश की खातिर वतन वालो ।
तुम्हे आवाज़ माँ देती है तुम सीमाए संभालो ॥
सिकंदर को हमी पोरश ने, झेलम से भगाया है ।
शहीदों को झुकावो सर, जवानों ने ये गया है ॥
हमे है दोस्त प्यारे साथ में, दुश्मन भी प्यारे है ।
हमारी दोस्ती और दुश्मनी, के नुस्खे प्यारे है ॥
करोगे प्यार से बातें, करेगें बात हम प्यारी ।
मगर सुन लो हमे चेतावनी, बिलकुल नहीं प्यारी ॥
अरोड़ा ने नियाजी को, सबक अच्छा सिखाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने ये गया है ॥
(१२-०२-१९९९)
Saturday, August 13, 2011
अनुपम तुम्हारे
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा ।
कितने रवि शशि मै तुम पे वारता रहा ॥
तुम हो इसी जगत की रचना ये ज्ञात होता ।
दिनकर के निकलने से पावन प्रभात होता ॥
'अनिल' तुम्हारे रूप को सवारता रहा ।
अनुपम तुम्हरे रूप को निहारता रहा ॥
पूनम तुम्हारे केश गूंथती उछाह ले ।
उषा लगा रही है महावर क्या चाह ले ॥
तारो के जितनी आयु हो यौवन खिला कमल ।
किसने तुम्हारी की है रचना विमल विमल ॥
तेरा रूप प्रेम सिन्धु में पखारता रहा ।
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा ।
कितने रवि शशि मै तुम पे वारता रहा ॥
तुम हो इसी जगत की रचना ये ज्ञात होता ।
दिनकर के निकलने से पावन प्रभात होता ॥
'अनिल' तुम्हारे रूप को सवारता रहा ।
अनुपम तुम्हरे रूप को निहारता रहा ॥
पूनम तुम्हारे केश गूंथती उछाह ले ।
उषा लगा रही है महावर क्या चाह ले ॥
तारो के जितनी आयु हो यौवन खिला कमल ।
किसने तुम्हारी की है रचना विमल विमल ॥
तेरा रूप प्रेम सिन्धु में पखारता रहा ।
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा ।
तिरंगे की कसम हमको
तिरंगे की कसम हमको, तिरंगा झुक नहीं सकता ।
उठा दुश्मन की खातिर जो, कदम वो रुक नहीं सकता ॥
तिरंगे को भगत सिंह ने, सजाया खून से अपने ।
तिरंगा हाथ में लेकर, बने जय हिंद के सपने ॥
अगर शान-ए-तिरंगा पर, कोई दुश्मन नज़र डाले ।
शपथ है पूर्वजों की, खाक में उसको मिला डाले ॥
नहीं कुर्बानियां भूले है, बिस्मिल की, जवाहर की ।
अभी तक आ रही खुशबु, है झासी के महावर की ॥
नहीं सुखा लहू अब तक, हिमालय की भुजावों ।
नहीं ठंडा हुवा है रक्त, अब तक रह्नुमायों का ॥
निशां आज़ाद भारत का, तिरंगा है तिरंगा ।
हमारे देश की है शान, लहराता तिरंगा ॥
भले ही हिंद के रणबाकुरे, गिन गिन के मर जाये ।
मगर हिमराज पे लहराएगा, प्यारा तिरंगा ॥
(११-०८-१९९९)
उठा दुश्मन की खातिर जो, कदम वो रुक नहीं सकता ॥
तिरंगे को भगत सिंह ने, सजाया खून से अपने ।
तिरंगा हाथ में लेकर, बने जय हिंद के सपने ॥
अगर शान-ए-तिरंगा पर, कोई दुश्मन नज़र डाले ।
शपथ है पूर्वजों की, खाक में उसको मिला डाले ॥
नहीं कुर्बानियां भूले है, बिस्मिल की, जवाहर की ।
अभी तक आ रही खुशबु, है झासी के महावर की ॥
नहीं सुखा लहू अब तक, हिमालय की भुजावों ।
नहीं ठंडा हुवा है रक्त, अब तक रह्नुमायों का ॥
निशां आज़ाद भारत का, तिरंगा है तिरंगा ।
हमारे देश की है शान, लहराता तिरंगा ॥
भले ही हिंद के रणबाकुरे, गिन गिन के मर जाये ।
मगर हिमराज पे लहराएगा, प्यारा तिरंगा ॥
(११-०८-१९९९)
ह्रदय में टीस सी होती (२०-०७-१९९९)
ह्रदय में टीस सी होती , दिशा में क्यों निशा सोती ।
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥
कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥
कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥
कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥
विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥
लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥
जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥
यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥
उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥
मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी
यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥
कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥
कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥
कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥
विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥
लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥
जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥
यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥
उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥
मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी
यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥
हम तमाशा बन गए उनका
हम तमाशा बन गए, उनका तमाशा देख कर ।
बातों ही बातों में मेरा, चाक दामां हो गया ॥
इस कदर वो अंजुमन में, लौटकर आई 'अनिल' ।
देखते ही देखते, रंगीन शामां हो गया ॥
मेरी गुस्ताखी थी लाज़िम, गुफ्तगू करने लगे ।
मुख़्तसर पर आये थे, और राजनामा हो गया ॥
लब्ज़ मुँह से एक न निकला, पर नज़र सब कह गयी ।
मैंने देखा उनका चिलमन, लाल जामां हो गया ॥
हम झुके उनकी कदम बोस़ी, को जाने मुन्तज़र ।
मेरे दिल से उनके दिल का, बायनामा हो गया ॥
मैंने उनको नूर-ए-जन्नत समझ, सिज़दा किया ।
मै मगर उनकी नज़र में, खानशामा हो गया ॥
बातों ही बातों में मेरा, चाक दामां हो गया ॥
इस कदर वो अंजुमन में, लौटकर आई 'अनिल' ।
देखते ही देखते, रंगीन शामां हो गया ॥
मेरी गुस्ताखी थी लाज़िम, गुफ्तगू करने लगे ।
मुख़्तसर पर आये थे, और राजनामा हो गया ॥
लब्ज़ मुँह से एक न निकला, पर नज़र सब कह गयी ।
मैंने देखा उनका चिलमन, लाल जामां हो गया ॥
हम झुके उनकी कदम बोस़ी, को जाने मुन्तज़र ।
मेरे दिल से उनके दिल का, बायनामा हो गया ॥
मैंने उनको नूर-ए-जन्नत समझ, सिज़दा किया ।
मै मगर उनकी नज़र में, खानशामा हो गया ॥
Tuesday, August 9, 2011
मेरी किस्मत बना सकते है
मेरी किस्मत बना सकते है, पर वो क्यों बनायेगे ।
मेरी दुनिया सजा सकते है , पर वो क्यों सजायेगे ॥
मेरे हालत बन सकते है , बस नज़रे उठा दे वो ।
मगर उनको रुलाना है , रुलाते है, रुलायेगे ॥
कि कब तब तुम न बोलोगे, ये हम अब देख ही लेगे ।
कि हम आवाज़ देगे, और तुमको आजमायेगे ॥
कि आ जावो है दम रुकता, नज़र बहकी न जाने क्यों ।
हम इतनी दूर जायेगे, बुलाने पर न आयेगे ॥
मेरी दुनिया सजा सकते है , पर वो क्यों सजायेगे ॥
मेरे हालत बन सकते है , बस नज़रे उठा दे वो ।
मगर उनको रुलाना है , रुलाते है, रुलायेगे ॥
कि कब तब तुम न बोलोगे, ये हम अब देख ही लेगे ।
कि हम आवाज़ देगे, और तुमको आजमायेगे ॥
कि आ जावो है दम रुकता, नज़र बहकी न जाने क्यों ।
हम इतनी दूर जायेगे, बुलाने पर न आयेगे ॥
Sunday, August 7, 2011
हाले दिल जब भी सुनते है उन्हें
हाले दिल जब भी सुनाते है उन्हें ।
देख कर वो मुस्कुराते है हमे ॥
भूलना हम चाहते है उनको जब ।
तब वो हरदम याद आते है हमे ॥
देखने को हम उन्हें बेज़ार है ।
वो न जाने क्यों सताते है हमे ॥
ठीक है उनकी अदा देखेगे हम ।
पूछेगे क्यों आजमाते है हमें ॥
क्या करे उस चाँद के दीदार को ।
बोलते ही चुप कराते है हमे ॥
जब भी पूछो कब मिलोगे, ईद में ।
इस तरह से अब बताते है हमे ॥
देख कर वो मुस्कुराते है हमे ॥
भूलना हम चाहते है उनको जब ।
तब वो हरदम याद आते है हमे ॥
देखने को हम उन्हें बेज़ार है ।
वो न जाने क्यों सताते है हमे ॥
ठीक है उनकी अदा देखेगे हम ।
पूछेगे क्यों आजमाते है हमें ॥
क्या करे उस चाँद के दीदार को ।
बोलते ही चुप कराते है हमे ॥
जब भी पूछो कब मिलोगे, ईद में ।
इस तरह से अब बताते है हमे ॥
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