Tuesday, August 30, 2011

मना ली एक दिन पहले ही

मना ली एक दिन पहले ही मैंने, ईद पूछो क्यूँ ।
अरे ! वो दूसरी मंजिल पे, मैंने चाँद देखा था ॥
बड़ा ही खूबसूरत था, बड़ी थी सादगी उसमे ।
बड़े नजदीक थे उसके, 'अनिल' जब चाँद देखा था ॥



Wednesday, August 24, 2011

जश्ने नौरोज़ के

जश्ने नौरोज़ के दिन आपको आना होगा ।
हटा के ज़ुल्फ़ महताब दिखाना होगा ॥

रुख को परदे में छुपाने की आदत नहीं अच्छी ।
हटा नकाब तुम्हे बज़्म में आना होगा ॥

लवों को सी के न बैठो खुदा के वास्ते तुम ।
सरे महफ़िल में तुम्हे नज़्म सुनाना होगा ॥

फुल जुल्फों में पिरोये है क्या कयामत है ।
आपको रोज़ इस जलवे को दिखाना होगा ॥

कही ऐसा न हो मिल पाए न सहर मुझको ।
आखिरे शब् में रूखे चाँद दिखाना होगा ॥

मैकशे जाने की आदत ख़राब लगती है ।
लाले मुज़ब लव का पैमाना पिलाना होगा ॥

जाने निगार रूबरू होने में खलिश है ।
निगाहे नाज़ से मुस्कान पे आना होगा ॥

ज़रिह बन के रह गयी है जिंदगी मेरी ।
सजदे में अनिल तुमको भी आना होगा ॥

( ०२ -०९ - १९९९ )

हम इश्क महफ़िलो

यूँ तो रोते है हम शामों सहर लेकिन ।
हम अश्क सरे आम बहाया नहीं करते ॥

ये उनकी खूं है देकर जख्म हम पे मुस्कुराते है ।
जख्मों पे हम भी मरहम लगाया नहीं करते ॥

निगाहें परवरिश के वास्ते बैठे तो कब तलक ।
पत्थर दिल तब्बसुम पे आया नहीं करते ॥

फितरतों में उनकी शामिल है क़त्ल करना ।
हम खूने जिगर अपना दिखाया नहीं करते ॥

उनकी तो ये आदत है मिल करके भूल जाना ।
हम लव से लेके नाम भुलाया नहीं करते ॥

हम दिल में बसाते है अपने यार की सूरत ।
तस्वीर आइनों में सजाया नहीं करते ॥

वो घर उजाड़ सबकी पिलाते शराब है ।
हम पीने कभी मैकदे जाया नहीं करते ॥

दुनिया से जी है भर गया अब जी के क्या करे ।
हम लाशों का मुज्जसम बनाया नहीं करते ॥

ये जिंदगी ही बोझ मेरे दोस्तों सुनो ।
हम कांधों पे अपने बोझ उठाया नहीं करते ॥

(१५ - ०८ -१९९९ )

Tuesday, August 23, 2011

हमने थे होश खोये

हमने थे होश खोये, उनके रूबरू होके ।
उनके भी कदम बहके, तो क्या मेरी खता है ॥
परदे में रुख छिपाए है, ये कैसा प्यार है ।
पल्लू जो सर से सरका, तो क्या मेरी खता है ॥

मेहँदी लगायी पैरों में, तो फूल हँस पड़े ।
बोसा लिया था फर्श ने, तो क्या मेरी खता है ॥
बन चौहदवीं का चाँद, न निकला करो छत पर ।
टकराए कोई बादल, तो क्या मेरी खता है ॥

बिखराई तुमने जुल्फे, मै समझा कि चाँद डूबा ।
तेरा साया मैंने देखा, तो क्या मेरी खता है ॥
लव खुलते ही गिरे थे, फूलों के कई गुच्छे ।
एक मैंने भी उठाया, तो क्या मेरी खता है ॥

ऐसे न सज सवंर कर, तुम अंजुमन में निकलो ।
टकराए कोई आशिक, तो क्या मेरी खता है ॥
तेरे लव को देख कर के, भवरें है कई मचले ।
तेरे लव पे आके बैठे, तो क्या मेरी खता है ॥

अंगड़ाई ना लिया करो, तुमको कसम हमारी ।
फिर तुम ना मुझसे कहना, कि ये मेरी खता है ॥

(०३ - ०४ - २००० )

हमने थी कसम खायी

हमने थी कसम खायी, तुमसे न मिलेगे ।
गर ख्वाब में मिल जाएँ, तो कोई क्या करे ॥
पीने कि है पाबन्दी, हरगिज न पियेंगे ।
जब खुद ही जाम छलके, तो कोई क्या करे ॥

उनकी ये आरज़ू थी, हम घर न रहेगे ।
जब दिल ही आशियाँ हो, तो कोई क्या करे ॥
अपनी ये तमन्ना थी, कुछ गुफ्तगू करेगे।
चिलमन न उठा शब् भर, तो कोई क्या करे ॥

सोचा था हम न रुसवां, दिलदार को क़रेगे ।
परवान मोहब्बत चढ़ी, तो कोई क्या करे ॥
मालिक मेरे ये कैसी, उलझन में फंस गया ।
उलझन उलझती जाये, तो कोई क्या करे ॥

शिकवा करेगें किस से, ए मेरे हमनशीं ।
जब जिंदगी हो कातिल, तो कोई क्या करे ॥
हमने किया है वादा, उनसे इंतज़ार का ।
गर वो ही रूठ जाये, तो कोई क्या करे ॥

हम दास्ताँ सुनाये जाकर, किसे 'अनिल' ।
जब हम ही दास्ताँ है, तो कोई क्या करे ॥
हमने थी कसम खायी, कि हम कुछ न कहगे ।
आहिस्ता खुल गए लव, तो कोई क्या करे ॥

(०३-०४-२००० )

Wednesday, August 17, 2011

एक मुद्दत से इंतजार है

एक मुद्दत से इंतजार है, कुछ बोलेंगे ।
देर से ही सही गुलाब से, लव खोलेंगे ॥

कुछ तो एहसास करते, देखते, मुस्कुरा देते ।
फिर से जुल्फों को, अपने चेहरे पे गिरा देते ॥

हम तो कब से खड़े है राहों में, इंतज़ार है ।
न जाने क्यों ये दिल, इतना बेकरार है ॥

सोचते है जो बची है, वो गुज़र जाये ।
मै चलू उसपे, जो डगर तेरे घर जाये ॥

ये इतनी देर, बहुत देर हो न जाये कही ।
मेरी किस्मत हो, ये किस्मत खो न जाये कहीं ॥


Sunday, August 14, 2011

माँ का श्रृंगार

माँग में भरना धूल हिंद की, जिसमे रवि की लाली हो ।
घुघराले बालों में बेंदी, चाँद सितारा वाली हो ॥
माथे पे बिंदिया सूरज की, जिसमे चिन्ह शेर का हो ।
आँखों में पुष्कर तीरथ और, वक्ष्स्तल अजमेर का हो ॥

काबा हो जिसकी पलकों पर, जिसका ह्रदय शिवाला हो ।
वाणी गीता सी पवन हो, हाथ में मणि की माला हो ॥
बनी तिरंगे की चूनर, और सिर पर मुकुट गगन का हो ।
भगत सिंग सा बासंती तन, जिसमे रंग लगन का हो ॥

चोली में चरखा बनवाना, जिस पर पड़ा दुशाला हो ।
ताजमहल से सुन्दर तन पर, कपड़ा खादी वाला हो ॥
चक्र करधनी में बनवाना, कर में विजय तिरंगा हो ।
धवल वेग जिसका, जिसकी बाहों में पवन गंगा हो ॥

आँचल में भर हिंदी सागर, पायल पटना की लाना ।
वीर जवाहर का रंग भी, तुम सभी जगह पर भरवाना ॥
आँखों में झरिया का काजल, नथ चित्तौड़ किले की हो ।
शुभ्र शीश पर नग हिमगिरि, चूड़ामणि बंग जिले की हो ॥

घंघरा गाँधी वाला जिसमे, वन्देमात्रम बूटा हो ।
लाल बहादुर का रंग भरना, कोई भाग न छूटा हो ॥
सारी बनी बनारस की और, ज़री हैदराबादी हो ।
हर धागा जिसका बतलाता, सौ करोड़ आबादी हो ॥

अर्जुन सी हुँकार, तांडव झासी की रानी जैसा ।
रक्षक जिसके वीर शिवाजी, उस सरहद को डर कैसा ॥
नलवे का रंग गहरा कर, संगीन थमाना बाहों में ।
फूल तोड़ लखनऊ शहर के, बिखरा देना राहों में ॥

कर श्रृंगार सजाकर उसको, कर देना तुम सिंह सवार।
तब जाकर कहलाएगी वो, भारत भू का शुभ अवतार ॥

(१५ अगस्त १९९९ - दिन रविवार )





चलो मस्त तुम तो धरा डोल देगी

चलो मस्त तुम तो धरा डोल देगी ।
अगर तुम हुंकारों चिता बोल देगी ॥

बनो निश्चयी प्रात को वश में कर लो ।
बनो भास्कर रात को वश में कर लो ॥

कि तुम भोर के दीप बनकर न बैठो ।
कि झिलमिल सितारों को आँचल में भर लो ॥

बनो विक्रमी एक संवत चला दो ।
कि तुम एक होली नयी फिर जला दो ॥

अगर मौन बन करके आघात खाए ।
तो धिक्कार तुम इस धरा पे क्यों आये ॥

बनो साहसी सेतु सागर पे बाँधो ।
समुन्दर कि लहरों को तुम दास कर लो ॥

धरा तो तुम्हारे बहुत सन्निकट है ।
गगन, रश्मियाँ, रवि को तुम पास कर लो ॥

तो तुम युग प्रवर्तक कि मूरत बनोगे ।
तो तुम मेरु गिरि कि तरह फिर तनोगे ॥

स्वयं आके घन तुम पे बरसायेगा जल ।
है बहुमूल्य तेरा दिवस, रात्रि, क्षण, पल ॥

कि पुरुषत्व ललकार पर ना भुलाना ।
कि अमरत्व जीवन में लेकर न आना ॥

तभी कौरवो को पराजित करोगे ।
तभी तीर तुम तरकशो में भरोगे ॥

कि हाथो से नित तू प्रलय का सृजन कर ।
कि फिर से कमंडल में संजीवनी भर ॥

कि तू भाग्य का जा स्वयं बन विधाता ।
तो फिर देखना कौन सम्मुख है आता ॥

(०५-०६-२०००)

शहीदों को झुकावो सिर

शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने ये गया है ।
लगावो धूल को सिर पर, वतन में चैन आया है ॥

वो बिस्मिल थे, भगत सिंह थे, ज़मीं को दे लहू अपना ।
जिन्होंने वर्षो देखा था, अनोखे देश का सपना ॥

फूल सर का अशफ़ाक ने, इस पर चढ़ाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने या गया है ॥

शहीदों ने सजायी माँग माँ की, खून देकर के ।
चुका सकते नहीं एहसान, ये सौ बार भी मर के ॥

खबर तुमको नहीं हमने क्या खोया और पाया है ।
बहुत ही बार हमको, दुश्मनों ने आजमाया है ॥

कसम हमको मरे हम, देश की खातिर वतन वालो ।
तुम्हे आवाज़ माँ देती है तुम सीमाए संभालो ॥

सिकंदर को हमी पोरश ने, झेलम से भगाया है ।
शहीदों को झुकावो सर, जवानों ने ये गया है ॥

हमे है दोस्त प्यारे साथ में, दुश्मन भी प्यारे है ।
हमारी दोस्ती और दुश्मनी, के नुस्खे प्यारे है ॥

करोगे प्यार से बातें, करेगें बात हम प्यारी ।
मगर सुन लो हमे चेतावनी, बिलकुल नहीं प्यारी ॥

अरोड़ा ने नियाजी को, सबक अच्छा सिखाया है ।
शहीदों को झुकावो सिर, जवानों ने ये गया है ॥

(१२-०२-१९९९)

Saturday, August 13, 2011

अनुपम तुम्हारे

अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा
कितने रवि शशि मै तुम पे वारता रहा

तुम हो इसी जगत की रचना ये ज्ञात होता
दिनकर के निकलने से पावन प्रभात होता

'अनिल'
तुम्हारे रूप को सवारता रहा
अनुपम तुम्हरे रूप को निहारता रहा

पूनम तुम्हारे केश गूंथती उछाह ले
उषा लगा रही है महावर क्या चाह ले

तारो के जितनी आयु हो यौवन खिला कमल
किसने तुम्हारी की है रचना विमल विमल

तेरा रूप प्रेम सिन्धु में पखारता रहा
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा

तिरंगे की कसम हमको

तिरंगे की कसम हमको, तिरंगा झुक नहीं सकता ।
उठा दुश्मन की खातिर जो, कदम वो रुक नहीं सकता ॥

तिरंगे को भगत सिंह ने, सजाया खून से अपने ।
तिरंगा हाथ में लेकर, बने जय हिंद के सपने ॥

अगर शान-ए-तिरंगा पर, कोई दुश्मन नज़र डाले ।
शपथ है पूर्वजों की, खाक में उसको मिला डाले ॥

नहीं कुर्बानियां भूले है, बिस्मिल की, जवाहर की ।
अभी तक आ रही खुशबु, है झासी के महावर की ॥

नहीं सुखा लहू अब तक, हिमालय की भुजावों ।
नहीं ठंडा हुवा है रक्त, अब तक रह्नुमायों का ॥

निशां आज़ाद भारत का, तिरंगा है तिरंगा ।
हमारे देश की है शान, लहराता तिरंगा ॥
भले ही हिंद के रणबाकुरे, गिन गिन के मर जाये ।
मगर हिमराज पे लहराएगा, प्यारा तिरंगा ॥

(११-०८-१९९९)

ह्रदय में टीस सी होती (२०-०७-१९९९)

ह्रदय में टीस सी होती , दिशा में क्यों निशा सोती ।
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥

कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥

कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥

कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥

विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥

लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥

जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥

यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥

उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥

मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी

यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥


हम तमाशा बन गए उनका

हम तमाशा बन गए, उनका तमाशा देख कर ।
बातों ही बातों में मेरा, चाक दामां हो गया ॥
इस कदर वो अंजुमन में, लौटकर आई 'अनिल' ।
देखते ही देखते, रंगीन शामां हो गया ॥

मेरी गुस्ताखी थी लाज़िम, गुफ्तगू करने लगे ।
मुख़्तसर पर आये थे, और राजनामा हो गया ॥
लब्ज़ मुँह से एक न निकला, पर नज़र सब कह गयी ।
मैंने देखा उनका चिलमन, लाल जामां हो गया ॥

हम झुके उनकी कदम बोस़ी, को जाने मुन्तज़र ।
मेरे दिल से उनके दिल का, बायनामा हो गया ॥
मैंने उनको नूर-ए-जन्नत समझ, सिज़दा किया ।
मै मगर उनकी नज़र में, खानशामा हो गया ॥


Tuesday, August 9, 2011

मेरी किस्मत बना सकते है

मेरी किस्मत बना सकते है, पर वो क्यों बनायेगे ।
मेरी दुनिया सजा सकते है , पर वो क्यों सजायेगे ॥
मेरे हालत बन सकते है , बस नज़रे उठा दे वो ।
मगर उनको रुलाना है , रुलाते है, रुलायेगे ॥

कि कब तब तुम न बोलोगे, ये हम अब देख ही लेगे ।
कि हम आवाज़ देगे, और तुमको आजमायेगे ॥
कि आ जावो है दम रुकता, नज़र बहकी न जाने क्यों ।
हम इतनी दूर जायेगे, बुलाने पर न आयेगे ॥

Sunday, August 7, 2011

हाले दिल जब भी सुनते है उन्हें

हाले दिल जब भी सुनाते है उन्हें ।
देख कर वो मुस्कुराते है हमे ॥
भूलना हम चाहते है उनको जब ।
तब वो हरदम याद आते है हमे ॥

देखने को हम उन्हें बेज़ार है ।
वो न जाने क्यों सताते है हमे ॥
ठीक है उनकी अदा देखेगे हम ।
पूछेगे क्यों आजमाते है हमें ॥

क्या करे उस चाँद के दीदार को ।
बोलते ही चुप कराते है हमे ॥
जब भी पूछो कब मिलोगे, ईद में ।
इस तरह से अब बताते है हमे ॥