जिधर देखता हूँ उधर बदगुमानी ।
नज़र में बड़ी दूर तक बेईमानी ॥
अजब हो गया है ये दुनिया का मेला ।
न लब पे शराफत न आखों में पानी ॥
बड़ी दूर तक ये नज़र देख आई ।
न मुझको दिया भीड़ में कुछ दिखाई ।।
बड़ा नूर चेहरे पे उतरा हुआ है ।
मगर उससे संजीदा है बेवफाई ॥
Sunday, March 29, 2009
Sunday, March 15, 2009
चले जाना चले जावो
चले जावो कोई दर और अब तुम खटखटा लेना ।
जो बाकी है गिले शिकवे कभी आकर मिटा लेना ॥
मगर राहों में मिल जावो तो बस इतनी सी है ख्वाहिश ।
जरा नज़रे मिला लेना जरा सा मुस्करा देना॥
जो जाते हो चले जावो निशानी हम भी रख्गे।
तुम्हारे साथ जो गुजरी जवानी हम भी रख्गे॥
कई अफसाने लिखे है यहाँ पर बैठ कर तुमने ।
उसी फेहरिस्त में इक दो कहानी हम भी लिखेगे ॥
जो बाकी है गिले शिकवे कभी आकर मिटा लेना ॥
मगर राहों में मिल जावो तो बस इतनी सी है ख्वाहिश ।
जरा नज़रे मिला लेना जरा सा मुस्करा देना॥
जो जाते हो चले जावो निशानी हम भी रख्गे।
तुम्हारे साथ जो गुजरी जवानी हम भी रख्गे॥
कई अफसाने लिखे है यहाँ पर बैठ कर तुमने ।
उसी फेहरिस्त में इक दो कहानी हम भी लिखेगे ॥
Wednesday, March 11, 2009
नील गगन भी झुक गया देख तुम्हारा रूप ।
सूरज निकला ही नही खिली सुनहरी धुप॥
नैनो की भाषा भली कह दे दिल का हाल
अच्छा हो या बुरा हो रहता नही खयाल ॥
बैठे तो पलके उठी आखे हो गई चार ।
दोबारा दर्शन नही रह गए पंथ निहार ॥
सुन्दरता ख़ुद ढूढती लेकर दीप ।
मोती चमके नाक में खाली रह गया सीप ॥
ताजमहल मैला हुवा देख तुम्हारा अंग ।
मै क्या तुमको देख कर दुनिया रह गई दंग ॥
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