Tuesday, January 25, 2011

६२व गद्तंत्र दिवस

हर साल २६ जनवरी आती है और चली जाती है । यू तो पता ही न चले कब आई कब गयी लेकिन भला हो कि दो चार दिन पहले से देश भक्ति के गीत स्कूल वगैरह से सुनाई देने लगते है और दूसरा ऑफिस कि छुट्टी । आज कल किसी को इतना वक़्त ही कहा है कि ये सब याद रखे । किसी को फुरसत ही नहीं है कि रोजी रोटी से हट कर सोचे और सोचे भी कैसे पीछे पूरे परिवार कि चिंता जो नहीं है । ऐसा नहीं है कि उनमे देश के लिए भक्ति नहीं है , सम्मान नहीं है सब कुछ है लेकिन टाइम नहीं है।
अब आप कहेगे कि आज़ादी कि लड़ाई लड़ने वाले लोगो के परिवार नहीं था उन्हें उसकी चिंता नहीं थी । आपका सवाल अपनी जगह सही है। दरअसल उन्हें गुलामी विरासत में मिली थी और वो उसके खिलाफ लड़ रहे थे । और आज विरासत में आज़ादी मिली है जिसका वो आनंद उठा रहे है । वो कहते है न जब तक ठोकर न लगे इन्सान संभलता नहीं है तो हो सकता है किसी ठोकर के इंतजार में हो । आज तो पैदा होते या यू कह दीजिये कि पैदा होने से पहले ही माँ बाप सोच लेते है कि मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा इंजिनियर बनेगा वगैरह वगैरह आज कोई नहीं कहता कि वो गाँधी , नेहरु भगत सिंह बनेगा । मै ये नहीं कहता कि ये उनकी गलती है लेकिन कही न कही कुछ तो कमी है । कुछ संस्कार का असर तो पड़ता ही है । क्यूकि संस्कार और संगती आदमी को क्या से क्या बना देती है । एक उदहारण के लिए जब धुल हवा के साथ होती है तो आसमान में ऊपर उठती चली जाती है और जब पानी का साथ उसे मिलता है तो कीचड़ बन जाती है ।
अभी हमारे प्रदेश के मुख्यमत्री का जन्म दिन था । पूरा लखनऊ नीली रौशनी से नहा रहा था । हर चौराहों को नीली झालरों से सजाया गया था । ऐसा लगता था मानो हर चौराहे पर नीले कमल उलटे कर के रख दिए गए है। मै नहीं कहता कि ये गलत है अरे भाई ये प्रदेश के मुख्या मंत्री का जन्म दिन था तो ये सब तो होना ही चाहिए । लेकिन जब कि आज २६ जनवरी है देश के लिए बहुत बड़ा दिन है । तो इस अवसर पर कुछ सरकारी इमारतों पर ही रौशनी है ये गलत है । अरे आज तो पूरा शहर तिरंगामय हो जाना चाहिए ।
आज जब सुबह चौराहे पर कुछ कम से गया था तो देखा कि एक रिक्सावाला अपने रिक्से के हंदले पर तिरंगा लगाये था यहाँ तक तो जाने दीजिये । मेरे घर जो कूड़ा लेने आता है उसने अपने ठेलिए पर अपने देश का झंडा लगा रखा था । लेकिन सड़क पर निकलती हुवी चमचमाती हुवी गाडियों पर मुझे कोई झंडा नहीं दिखा । आप कह सकते है कि देश भक्ति दिल से होती है दिखाने से नहीं, झन्डा लगाने से नहीं शायद आप सही हो । मै इतना ज्ञानी तो नहीं हू लेकिन एक बात तो जनता हू कि कही न कही कोई मानसिकता इस तरह जन्म ले रही है कि कुछ अजीब सा लग रहा है ।

चमकते चाँद पर रौशन तिरंगा

चमकते चाँद पर रौशन तिरंगा है निशानी ।
हमारे आन की सम्मान की है ये कहानी ॥
डगर कैसी भी हो चलता रहे, उड़ता रहेगा ।
इसी पर ही शहीदों ने लुटाई थी जवानी ॥
ये वो परचम है जो कि झुक सकता नहीं है ।
हमारा हौसला है वो जो रुक सकता नहीं है ॥
कही रुकता नहीं है कारवां तूफ़ान आने दो ।
समंदर है ये मचलेगा वो रुक सकता नहीं है।।
सिखाते है हमें चलना नहीं वो जानते है ये ।
कि हम तूफान सीनों में छुपा लेते है सारे ॥
जरुरत है कोई गंगा इधर से फिर उधर जाये ।
अगर तुम हो समझते तो समझ लो ये इशारे ..

Saturday, January 22, 2011

जब ढलती शाम सुहानी हो

जब ढलती शाम सुहानी हो , कोई मीरा दीवानी हो ।

जब थाल सजाया जाता हो , जयमाल उठाया जाता हो ॥

तब याद तुम्हारी आती है, तब याद तुम्हारी आती है ।

जब दीपक जलने वाला हो , हाथो में तुलसी माला हो ॥

कोई मूरत प्यारी प्यारी हो , जब पूजा कि तैयारी हो ।

तब याद तुम्हारी आती है, तब याद तुम्हारी आती है ।

जब सूरज जगने वाला हो , किरणों का रूप निराला हो ।।

जब कोयल कूक सुनाती है, जाने क्या कह कर जाती है।

तब याद तुम्हारी आती है, तब याद तुम्हारी आती है ।

जब सन्नाटा सा होता है, कोई छुप छुप कर रोता है ।

नैनो में मोती रहते है , ये सच है कुछ तो कहते है ॥

तब याद तुम्हारी आती है, तब याद तुम्हारी आती है ।

जब दूर कही कुछ बाते हो , रुक रुक कर जब बरसाते हो ।।

कुछ मेघ गगन में रहते हो , रुक रुक कर कुछ तो कहते हो ।

तब याद तुम्हारी आती है, तब याद तुम्हारी आती है । ।

Saturday, January 15, 2011

जिन्हें हम ढूढ़ते थे

जिन्हें हम ढूढ़ते थे, आज तक अपने खयालो में ।
वो कैसे मिल गए थे, कल मुझे दिन के उजालो में ॥
जिन्हें हम सोचते थे, वो मुझे कुछ तो कहेगे पर ।
वो उल्टा खुद हमे उलझा, गए अपने सवालो में ॥

अजब है बात कि अब, बात तो कुछ भी नहीं होती ।
है आँखों में गिले, बरसात पर कुछ भी नहीं होती ॥
वो आते है न जाते है, शिकायत भी करे किस से ।
कि भूले है ये दिन, हम रात तो कुछ भी नहीं होती ॥

कि वो एक दौर था, हम रोज मिलते थे कही पर अब ।
कि चाहो लाख पर, एक बार भी सूरत नहीं मिलती ॥
जिसे हम पूज लेते, सर झुकाते, चुप खड़े रहते ।
मगर अब ढूढ़ता हू, वो कही मूरत नहीं मिलती ॥

नज़र भी सामने होगी, सफ़र भी सामने होगा ।
नहीं मालूम था वो, सामने ही मुस्कराएगा ॥
फिजा महकी हुवी होगी , हवा बहकी हुवी होगी ।
नहीं मालूम था मुझको, कि वो अब फिर न आएगा ॥

मुझे मालूम है, ये चाँद तो उस आसमा का है । ।
सितारों में अकेला है, बताना क्या जरुरी है । ।
मुझे मालूम है छूना उसे एक ख्वाब है लेकिन ।
मिले या ना मिले ये सब जताना क्या जरुरी है ॥