Sunday, March 21, 2010

जो थी उम्मीद बाकी मिट गयी उनके इशारे से ।

जो थी उम्मीद बाकी मिट गयी उनके इशारे से ।
नज़रे झुक गयी जो मिल गई थी इक इशारे से ॥
बड़े बदले हुए तेवर है कुछ अंदाज़ ज़ालिम है ।
कि आगे बढ चुके थे रूक गए उनके इशारे से ॥
अरे! क्या बात है मंज़र बहूत रंगीन है पर क्या ।
अगर होठों पे आ जाये हसीं मेरे इशारे से । ।
मुझे रूकने की आदत है तुम्हे रुकने की पाबन्दी ।
कि लम्हा भर ठहर जावो कि कुछ लिख दो इशारे से ॥

Sunday, March 7, 2010

कभी अक्सर खयालो में चले आते है समझाने

कभी अक्सर खयालो में चले आते है समझाने ।
हकीकत में नज़र उनसे कभी मिलती नहीं है ॥
यही एहसान क्या कम है की ख्वाबो में चले आये ।
वरना फुर्सत से भी उन्हें फुर्सत मिलती नहीं है ॥

Monday, March 1, 2010

सुबह होली सहर होली की हर घर और नगर होली

मुबारक क्या कहूं उस दम मुबारक हो गयी होली ।
सुबह होली सहर होली की हर घर और नगर होली ।
खुली जुल्फे खुली होली बंधी जुल्फें मगर होली ॥
गुलाबी रंग महकता है कदम उनका बहकता है ।
की मंज़र मिल गया कैसा है उनकी हर नज़र होली ॥
जो मेरे साथ ना होली तो उसके साथ ही होली।
खिले होली मिले होली जो होली थी किधर होली ॥
रंगे होली सुबह से ही की जिस पल तुमने ली होली ।
जिधर रुख कर दिया तुमने वो होली फिर उधर होली ॥
कहाँ होली किधर होली की रातो में जली होली ।
उड़ाया तुमने जो दामन तो होली उस डगर होली ॥