Sunday, December 6, 2009

ज़ब भी चेहरे उदास होते है

ज़ब भी चेहरे उदास होते है ,दिल भी कुछ बदहवाश होते है॥
वो तो कुछ बात है की सलामत हो अनिल ।
वरना जल जाते है जो आस पास होते है ॥

Saturday, November 28, 2009

नज़र को क्यूँ उठाते हो नज़र को क्यो गिरते हो

नज़र को क्यूँ उठाते हो नज़र को क्यो गिराते हो ।
क्या कोई चीज़ ऐसी है जिसे तुम तौले जाते हो ॥
लवो पर लव सजाए हो ये ख़ामोशी कहाँ की है ।
ज़रा सी बात को न जाने क्यूँ दिल से लगाते हो ॥
बहुत दिन हो गए हमने नही देखी हँसी सूरत ।
न जाने मुस्कुराने में क्यूँ कंजूसी दिखाते हो ॥

Friday, November 6, 2009

किसको फुर्सत है दिल लगाने की

किसको फुर्सत है दिल लगाने की ।
किसको ख्वाहिश है मुस्कुराने की ॥
तुम न आवोगे मगर जाने क्यों ।
मै राह तकता हूँ तेरी आने की ॥
एक था वक्त खुशी नाचती थी चेहरे पे ।
अब शायद लग गई नज़र मुझे ज़माने की ।।
तरसता हूँ की कोई हंस के बात ही कर ले ।
ढूढता हूँ कोई वज़ह मै मुस्कराने की ॥
अपनी नज़रे भी खुली छोड़ दी मैंने अब ।
शायद लम्हा कोई ले आए ख़बर आने की ॥
अब बेजार और बेजान हुए जाते है ।
उनको जिद मेरी हिम्मत को आजमाने की ॥

Sunday, October 25, 2009

मुबारक बात देना अब

मुबारक बात देना अब बड़ी ही बात होती है ।
की हम ने देख ली जितनी अँधेरी रात होती है ॥
कोई बंदिश नही हम पर अभी तक अक्श जाने क्यो ।
की चलते साथ है लेकिन नही अब बात होती है ।।
नज़र के सामने के बुत चले जाते है क्या कहिये ।
नज़र के सामने सब बुत बने जाते है क्या कहिये ॥
बड़े अरमान थे दिल में मुलाकाते बहुत होगी ।
नज़र के सामने नज़रे झुका बैठे है क्या कहिये॥

Saturday, October 17, 2009

दिए की लौ ज़रा फिर से निखर

दिए की लौ ज़रा फिर से निखर जाए तो अच्छा है ।
रुके होठो पे फिर से एक खुशी आए तो अच्छा है ॥
बड़े अच्छे है गुलशन के हजारो फूल पर क्या है ।
महक जो फूल छोडेगा वही तो फूल अच्छा है ॥
दशहरे की खुशी को हम मनाकर है अभी लौटे ।
दिवाली की मुबारक बात दे जावूँ तो अच्छा है ॥

Sunday, October 11, 2009

जिंदगी गुज़र रही थी

जिंदगी गुज़र रही थी रह गुज़र से ।
की तूफ़ान आया न जाने किधर से ॥
उस वक्त था होश मैंने गवाया ।
गई नींद तब से नही चैन आया ॥
उठे सोच कर की बहुत कुछ कहेगे ।
की अब हम नही उनका ये गम सहेंगे ॥
मगर राह में जब वो ख़ुद मिल गए ।
न जाने मेरे तब क्यों लव सिल गए ॥
चेहरा गुलाबी नज़र आ रहा था ।
नजरो में था मैकदे का समन्दर ॥

जानिब से मेरी शुक्रिया (०७-०१-२००१)

जानिब से मेरी शुक्रिया मोहतरमा आपको ।
तस्लीम मेरा आपको ख़त आपका मिला ॥
इन अक्षरों में अक्श उभरता है आपका ।
चेहरे पे आफ़ताब निकलते हुए मिला ॥
खुशकिस्मती हमारी है हम याद आपको है ।
वरना जो मिला रुख को बदलते हुए मिला ॥
माना की पत्थरों से कुचले गए है फूल ।
पर गुलिस्ता पत्थर में भी खिलते हुए मिला ॥
कुर्बानियों का सिलसिला ठहरे न इसलिए ।
इंसान अपने जख्मो को सिलते हुए मिला ॥
कितनो को आगे बढ़के संभालेगे आप भी ।
मुझको जो मिला गिर के संभलते हुए मिला ॥
आवाज़ में न लाइए यूं बेरुखी इतनी ।
सूरज भी कहीं पर हमे ढलते हुए मिला ॥
दरिया की रवानी को मत दीजिये हवा ।
तूफ़ान हमको सीनों में पलते हुए मिला ॥
आपस में लड़ेगे तो सरहद पे क्या होगा ।
अरे ! बर्फ में जवान पिघलते हुए मिला ॥

Sunday, October 4, 2009

हम भटकते रहे आज तक जाने क्यूँ

हम भटकते रहे आज तक जाने क्यूँ ।
आज नज़रे उठाई खुदा मिल गया ॥
ऐसा था नूर चेहरे पे फैला हुआ ।
जैसे जीने का इक हौसला मिल गया ॥
चंद लम्हे चुरा लीजिये मौत से ।
हो सके तो ये इक काम कर दीजिये ॥
तुम को फूलों की चाहत बहुत ठीक है ।
मेरे सीने में काटों को भर दीजिये ॥
एक पल में हजारो जन्म जी लिए ।
जिंदगी से मुझे आज क्या कम है ॥
आरजू अब नही है किसी बात की ।
कितना प्यारा सा ज़न्नत पैगाम है ..

ना सही हकीक़त में लेकिन

ना सही हकीक़त में लेकिन ख्वाबो में तो मिल जाते है ।
ना जाने कितनी रातों से बस टेरर सपने आते है ॥
मै तुम्हे देखता जाता हू पर तुम मुस्काती रहती हो ।
उन हिलते डुलते होठो से न जाने क्या क्या कहती हो ॥
मेरी नजरो में देखो तो बस चेहरा वही गुलाबी है ।
नजरो का क्या बस नज़रे है पर नज़रे बहुत शराबी है ॥

क्या ताज महल सुंदर होगा

क्या ताज महल सुंदर होगा तेरी सुन्दरता के आगे ।
क्या उसमे तुम सी खुशबू है क्या नैना है जागे जागे ॥
क्या वह अलसाया रहता है तुमसी अंगडाई लेता है ।
चेहरे से हटाने पर जुल्फे क्या चाँद दिखाई देता है ॥
होठों से ऐसा लगता है लिपटी आपस में कलियाँ है ।
तेरी आँखों की कोरो में दिखती जन्नत की गलियां है ॥

जो तुमने नज़रे उठा के देखा

जो तुमने नज़रे उठा के देखा ,
चमक सितारों की खो गई है ।
जो पल्लू उड़ के हटा बदन से ,
वो घडियां रगीन हो गई है ॥
न दिल है बस में न हम है बस में ,
चली क़यामत इधर किधर से ।
हुई है तूफ़ान जैसी हलचल ,
कदम पड़े है जिधर जिधर से ॥
ये चाँद सूरज है होठ तेरे ,
तपन से मुझको जला रहे है।
हमें नही कुछ भी ख्याल अपना ,
मगर वो हँसते ही जा रहे है ॥
निशां कदम के मै चूम आया ,
चुने है कांटे भी आज मैंने ।
हुए है दोनों ही हाथ घायल ,
न ज़ख्म देखे मगर किसी ने ॥
उन्हें ये जिद है की वो हसी है ,
तो हमने क्या कुछ ग़लत कहा है ।
तुम्हारे दीदार पर है जिंदा ,
वरना अब जिंदगी ही कहाँ है ॥

Friday, October 2, 2009

जब भी मै मुसीबतों

जब भी मै मुसीबतों से घिर जाता हूँ ।
तुमको देखता हूँ और मुस्कराता हूँ ॥
तुम लाख ना देखो मुझको ये अनिल ।
मगर मै हूँ की तुम्हे देखता जाता हूँ ॥
वक्त आता है चला जाता है चंद सांसे है गुजर जाने दो ।
ये तो खुशुबू है मत रोको इसको फिजावो में बिखर जाने दो

Sunday, September 27, 2009

यहाँ अब चंद लोगो के लिए

कई सारे वसीमो ने मुझे घर पर बुलाया था ।
बड़े ही नाज़ से उस नाजनी ने घर सजाया था ॥
बड़ी दुस्वारियो में कल वो मौका फिर गवां आया ।
बड़ी मुद्दत से जो मौका हमारे हाथ आया था ॥
मेरे पीछे कई लोगो ने कल मजमा लगाया था ।
कि जिस दम हमने आफिस को कदम अपना बढाया था ।।
मैं नज़रे फेर कर उस रस्ते को पार कर आया ।
मेरी खातिर जहाँ पर उसने ख़ुद दामन बिछाया था ॥
दिखा था चाँद रौशन चांदनी बिखरी मगर क्या है ।
उठाई थी नज़र मैंने कि कुछ उम्मीद होती है ।।
दशहरे की खुशी हम साथ मिल कर के मनायेगे ।
मगर अब चंद लोगो की यहाँ पर ईद होती है ॥

Friday, September 11, 2009

बड़ा अरमान था

बड़ा अरमान था मुझको की मै तुम पर ग़ज़ल लिख दू ।
खुली जुल्फे घटा कह दू गुलाबी लव कवल लिख दू ॥
बिठा लू सामने अपने करुँ कुछ गुफ्तगुं दिल की ।
बुला लू चांदनी रोशन तुम्हे जीनत महल लिख दू ॥
मगर तुम तो समंदर हो ग़ज़ल बनती बिगड़ती है ।
अब तुम पर क्या ग़ज़ल कह दू अब तुम पर क्या ग़ज़ल लिख दू ॥

Tuesday, September 8, 2009

ये कैसे आई लव पे लाली गुलाब की ।
क्या झुक गई थी लव पे डाली गुलाब की ।
जर्बान रुक गई अरे जब लव पे बल पड़े ।
माहेशिकस्त बन के वो छत पर निकल पड़े ।
हम बुत से बन गए है और बुत है चल पड़े
खालिश खलिश में पड़ गया गुलनार कौन है ।
शब् आखिरे में निकला सरकार कौन है ।
हर गाम चुस्त था फिर कैसे फिसल पड़े ।
माहेशिकस्त बन के वो छत पर निकल पड़े ।
हम बुत से बन गए है और बुत है चल पड़े ।

Sunday, August 2, 2009

वो नाज़ुक

वो नाज़ुक फूल जिसको ढूढ़ते थे हम बहारो में ।
अभी नज़रे उठाई दिख गया वो उन कतारों में ॥
न हो मुझ पर यकी तो आईने से पूछ लो जाकर ।
अभी तक सुर्खी बाकी है हसी लव के किनारों में ॥
नज़ारा और क्या देखू नज़र भर उनको जो देखा ।
अब इससे और ज्यादा क्या हसी होगा नज़रो में ॥

Sunday, July 26, 2009

बड़े अरमा

बड़े अरमां लिए दिल में उठे थे घर को जाने को ।
मगर अब हम बहुत बेताब है महफ़िल सजाने को ॥
बुघ्हे चेहरे नज़र मायूश लव खामोश है तो क्या ।
कही से ढूढ़ लायेगे हँसी चेहरा सजाने को ॥
कई नगमे , कई नज्मे , कई कौवालिया होगी ।
मगर अब हाथ उठेगे सिर्फ़ ताली बजाने को ॥

Thursday, June 11, 2009

नज़ारे दिख गए

नज़ारे दिख गए मुझसे नज़र भी देख ली मैंने ।
बड़ी फुरसत में बैठे हो नज़र थामे हुए दिल से ॥
तुम्हे यू देख कर कोई सरारत हो गई मुझसे ।
तो उठकर चल न देना तुम कही इस बार महफिल से ॥

Tuesday, May 12, 2009

तेरा सर गर मेरे ...

तेरा सर गर मेरे कांधे पे आ जाए तो क्या होगा ।
मेरा दम फिर अगर उस दम निकल जाए तो क्या होगा ॥
ये दिल नादान है सुनता , नही करता है मन मानी ।
ये धड़कन फिर अगर उस दम ठहर जाए तो क्या होगा ।
तेरा जुल्फे गिरा कर अपने चेहरे पर चले आना ।
अगर उस दम कोई बिजली चमक जाए तो क्या होगा ॥
तेरे जलवों की ख्वाहिश थी तेरे जलवे नज़र आए ।
अगर जलवा किसी की जान ले जाए तो क्या होगा ॥

Friday, April 24, 2009

वक्त के बढ़ते कदम

वक्त के बढ़ते कदम की आज आहट आ रही है ।
देख कर सूरत तुमाहरी चांदनी शर्मा रही है ॥
वक्त का दरिया है रुक सकता नही अब रोक मत ।
चंद लम्हे रह गए है भागी जा रही है ॥

Sunday, March 29, 2009

जिधर देखता हूँ

जिधर देखता हूँ उधर बदगुमानी ।
नज़र में बड़ी दूर तक बेईमानी ॥
अजब हो गया है ये दुनिया का मेला ।
न लब पे शराफत न आखों में पानी ॥
बड़ी दूर तक ये नज़र देख आई ।
न मुझको दिया भीड़ में कुछ दिखाई ।।
बड़ा नूर चेहरे पे उतरा हुआ है ।
मगर उससे संजीदा है बेवफाई ॥

Sunday, March 15, 2009

चले जाना चले जावो

चले जावो कोई दर और अब तुम खटखटा लेना ।
जो बाकी है गिले शिकवे कभी आकर मिटा लेना ॥
मगर राहों में मिल जावो तो बस इतनी सी है ख्वाहिश ।
जरा नज़रे मिला लेना जरा सा मुस्करा देना॥
जो जाते हो चले जावो निशानी हम भी रख्गे।
तुम्हारे साथ जो गुजरी जवानी हम भी रख्गे॥
कई अफसाने लिखे है यहाँ पर बैठ कर तुमने ।
उसी फेहरिस्त में इक दो कहानी हम भी लिखेगे ॥



Wednesday, March 11, 2009

नील गगन भी झुक गया देख तुम्हारा रूप ।

सूरज निकला ही नही खिली सुनहरी धुप॥

नैनो की भाषा भली कह दे दिल का हाल

अच्छा हो या बुरा हो रहता नही खयाल ॥

बैठे तो पलके उठी आखे हो गई चार ।

दोबारा दर्शन नही रह गए पंथ निहार ॥

सुन्दरता ख़ुद ढूढती लेकर दीप ।

मोती चमके नाक में खाली रह गया सीप ॥

ताजमहल मैला हुवा देख तुम्हारा अंग ।

मै क्या तुमको देख कर दुनिया रह गई दंग ॥

Tuesday, March 10, 2009

सागर में लहरे उठाती हुई ,
वो चली आ रही मुस्कराते हुई ।
सामने जैसे हो मेरे ताजमहल ,
चांदनी रात हो जगमगाती हुई ।