Sunday, October 11, 2009

जिंदगी गुज़र रही थी

जिंदगी गुज़र रही थी रह गुज़र से ।
की तूफ़ान आया न जाने किधर से ॥
उस वक्त था होश मैंने गवाया ।
गई नींद तब से नही चैन आया ॥
उठे सोच कर की बहुत कुछ कहेगे ।
की अब हम नही उनका ये गम सहेंगे ॥
मगर राह में जब वो ख़ुद मिल गए ।
न जाने मेरे तब क्यों लव सिल गए ॥
चेहरा गुलाबी नज़र आ रहा था ।
नजरो में था मैकदे का समन्दर ॥

No comments:

Post a Comment