Sunday, October 4, 2009

ना सही हकीक़त में लेकिन

ना सही हकीक़त में लेकिन ख्वाबो में तो मिल जाते है ।
ना जाने कितनी रातों से बस टेरर सपने आते है ॥
मै तुम्हे देखता जाता हू पर तुम मुस्काती रहती हो ।
उन हिलते डुलते होठो से न जाने क्या क्या कहती हो ॥
मेरी नजरो में देखो तो बस चेहरा वही गुलाबी है ।
नजरो का क्या बस नज़रे है पर नज़रे बहुत शराबी है ॥

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