Tuesday, January 15, 2013

मै जोकर ही सही

मै जोकर ही सही तेरी महफ़िल में अनिल।
जो जोकर हू  तो हँसाने के काम आता हू ।

पानी हू मै मुझमे रवानी का हुनर है यारो।
बिसलेरी ना सही पर प्यास बुझाने के काम आता हू।।

दरख़त तुम सा न सही पर छाव बहुत ज्यादा है।
टूट भी जाऊगा तो जलाने के काम आता हू।।

चराग ही सही कुछ देर में बुझ जाऊगा।
जब तलक जलता हू मै रौशनी लुटाता हू।।

खिलाडी हो तो खेल खेलो

खिलाडी हो तो खेल खेलो,
बिछाई है जो उस बिसात में रहो।
वो तिनके नहीं जो फूक से उड़ जाये हम,
आधियों तुम जरा अपनी औकात में रहो।।

ये लखनऊ है शरीफों की महफ़िल है,
कुछ ख्याल करो हदे हालत में रहो।
मै जानता हू  कि हर बात पे बहक जाते हो,
कोशिश करो, काबू रखो, जज्बात में रहो।।

आइना हू तेरा चेहरा दिखा के जाउगा,
जवाब आते है? नहीं तो सवालात में रहो।
मै जुगनू हू न दिया हु जो बुझा दोगे मुझे,
रास्ता मालूम है न इस खुराफात में रहो।। 

था शीशे की तरह मै साफ़

था शीशे की तरह मै साफ़ वो पत्थर समझ बैठे।
जरा सी छाव क्या दे दी वो अपना घर समझ बैठे।।

बड़ी इज्ज़त अदब से पेश आते है शराफत है।
न जाने क्या उन्हें सूझी कि वो जोकर समझ बैठे।।

बढ़ाये थे मदद को हाथ वो मजबूर थे जिस दम।
बड़ा अच्छा सिला पाया कि वो नौकर समझ बैठे।।

संभाला था सड़क पर जब वहां वो लडखडाये थे।
बड़े मासूम वो निकले हमे ठोकर समझ बैठे।।