Sunday, March 29, 2009

जिधर देखता हूँ

जिधर देखता हूँ उधर बदगुमानी ।
नज़र में बड़ी दूर तक बेईमानी ॥
अजब हो गया है ये दुनिया का मेला ।
न लब पे शराफत न आखों में पानी ॥
बड़ी दूर तक ये नज़र देख आई ।
न मुझको दिया भीड़ में कुछ दिखाई ।।
बड़ा नूर चेहरे पे उतरा हुआ है ।
मगर उससे संजीदा है बेवफाई ॥

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