Sunday, September 27, 2009

यहाँ अब चंद लोगो के लिए

कई सारे वसीमो ने मुझे घर पर बुलाया था ।
बड़े ही नाज़ से उस नाजनी ने घर सजाया था ॥
बड़ी दुस्वारियो में कल वो मौका फिर गवां आया ।
बड़ी मुद्दत से जो मौका हमारे हाथ आया था ॥
मेरे पीछे कई लोगो ने कल मजमा लगाया था ।
कि जिस दम हमने आफिस को कदम अपना बढाया था ।।
मैं नज़रे फेर कर उस रस्ते को पार कर आया ।
मेरी खातिर जहाँ पर उसने ख़ुद दामन बिछाया था ॥
दिखा था चाँद रौशन चांदनी बिखरी मगर क्या है ।
उठाई थी नज़र मैंने कि कुछ उम्मीद होती है ।।
दशहरे की खुशी हम साथ मिल कर के मनायेगे ।
मगर अब चंद लोगो की यहाँ पर ईद होती है ॥

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