Saturday, August 13, 2011

अनुपम तुम्हारे

अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा
कितने रवि शशि मै तुम पे वारता रहा

तुम हो इसी जगत की रचना ये ज्ञात होता
दिनकर के निकलने से पावन प्रभात होता

'अनिल'
तुम्हारे रूप को सवारता रहा
अनुपम तुम्हरे रूप को निहारता रहा

पूनम तुम्हारे केश गूंथती उछाह ले
उषा लगा रही है महावर क्या चाह ले

तारो के जितनी आयु हो यौवन खिला कमल
किसने तुम्हारी की है रचना विमल विमल

तेरा रूप प्रेम सिन्धु में पखारता रहा
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा

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