अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा ।
कितने रवि शशि मै तुम पे वारता रहा ॥
तुम हो इसी जगत की रचना ये ज्ञात होता ।
दिनकर के निकलने से पावन प्रभात होता ॥
'अनिल' तुम्हारे रूप को सवारता रहा ।
अनुपम तुम्हरे रूप को निहारता रहा ॥
पूनम तुम्हारे केश गूंथती उछाह ले ।
उषा लगा रही है महावर क्या चाह ले ॥
तारो के जितनी आयु हो यौवन खिला कमल ।
किसने तुम्हारी की है रचना विमल विमल ॥
तेरा रूप प्रेम सिन्धु में पखारता रहा ।
अनुपम तुम्हारे रूप को निहारता रहा ।
Bahut Sunder bhav....
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