Tuesday, August 23, 2011

हमने थे होश खोये

हमने थे होश खोये, उनके रूबरू होके ।
उनके भी कदम बहके, तो क्या मेरी खता है ॥
परदे में रुख छिपाए है, ये कैसा प्यार है ।
पल्लू जो सर से सरका, तो क्या मेरी खता है ॥

मेहँदी लगायी पैरों में, तो फूल हँस पड़े ।
बोसा लिया था फर्श ने, तो क्या मेरी खता है ॥
बन चौहदवीं का चाँद, न निकला करो छत पर ।
टकराए कोई बादल, तो क्या मेरी खता है ॥

बिखराई तुमने जुल्फे, मै समझा कि चाँद डूबा ।
तेरा साया मैंने देखा, तो क्या मेरी खता है ॥
लव खुलते ही गिरे थे, फूलों के कई गुच्छे ।
एक मैंने भी उठाया, तो क्या मेरी खता है ॥

ऐसे न सज सवंर कर, तुम अंजुमन में निकलो ।
टकराए कोई आशिक, तो क्या मेरी खता है ॥
तेरे लव को देख कर के, भवरें है कई मचले ।
तेरे लव पे आके बैठे, तो क्या मेरी खता है ॥

अंगड़ाई ना लिया करो, तुमको कसम हमारी ।
फिर तुम ना मुझसे कहना, कि ये मेरी खता है ॥

(०३ - ०४ - २००० )

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