यूँ तो रोते है हम शामों सहर लेकिन ।
हम अश्क सरे आम बहाया नहीं करते ॥
ये उनकी खूं है देकर जख्म हम पे मुस्कुराते है ।
जख्मों पे हम भी मरहम लगाया नहीं करते ॥
निगाहें परवरिश के वास्ते बैठे तो कब तलक ।
पत्थर दिल तब्बसुम पे आया नहीं करते ॥
फितरतों में उनकी शामिल है क़त्ल करना ।
हम खूने जिगर अपना दिखाया नहीं करते ॥
उनकी तो ये आदत है मिल करके भूल जाना ।
हम लव से लेके नाम भुलाया नहीं करते ॥
हम दिल में बसाते है अपने यार की सूरत ।
तस्वीर आइनों में सजाया नहीं करते ॥
वो घर उजाड़ सबकी पिलाते शराब है ।
हम पीने कभी मैकदे जाया नहीं करते ॥
दुनिया से जी है भर गया अब जी के क्या करे ।
हम लाशों का मुज्जसम बनाया नहीं करते ॥
ये जिंदगी ही बोझ मेरे दोस्तों सुनो ।
हम कांधों पे अपने बोझ उठाया नहीं करते ॥
(१५ - ०८ -१९९९ )
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