Wednesday, August 24, 2011

जश्ने नौरोज़ के

जश्ने नौरोज़ के दिन आपको आना होगा ।
हटा के ज़ुल्फ़ महताब दिखाना होगा ॥

रुख को परदे में छुपाने की आदत नहीं अच्छी ।
हटा नकाब तुम्हे बज़्म में आना होगा ॥

लवों को सी के न बैठो खुदा के वास्ते तुम ।
सरे महफ़िल में तुम्हे नज़्म सुनाना होगा ॥

फुल जुल्फों में पिरोये है क्या कयामत है ।
आपको रोज़ इस जलवे को दिखाना होगा ॥

कही ऐसा न हो मिल पाए न सहर मुझको ।
आखिरे शब् में रूखे चाँद दिखाना होगा ॥

मैकशे जाने की आदत ख़राब लगती है ।
लाले मुज़ब लव का पैमाना पिलाना होगा ॥

जाने निगार रूबरू होने में खलिश है ।
निगाहे नाज़ से मुस्कान पे आना होगा ॥

ज़रिह बन के रह गयी है जिंदगी मेरी ।
सजदे में अनिल तुमको भी आना होगा ॥

( ०२ -०९ - १९९९ )

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