जश्ने नौरोज़ के दिन आपको आना होगा ।
हटा के ज़ुल्फ़ महताब दिखाना होगा ॥
रुख को परदे में छुपाने की आदत नहीं अच्छी ।
हटा नकाब तुम्हे बज़्म में आना होगा ॥
लवों को सी के न बैठो खुदा के वास्ते तुम ।
सरे महफ़िल में तुम्हे नज़्म सुनाना होगा ॥
फुल जुल्फों में पिरोये है क्या कयामत है ।
आपको रोज़ इस जलवे को दिखाना होगा ॥
कही ऐसा न हो मिल पाए न सहर मुझको ।
आखिरे शब् में रूखे चाँद दिखाना होगा ॥
मैकशे जाने की आदत ख़राब लगती है ।
लाले मुज़ब लव का पैमाना पिलाना होगा ॥
जाने निगार रूबरू होने में खलिश है ।
निगाहे नाज़ से मुस्कान पे आना होगा ॥
ज़रिह बन के रह गयी है जिंदगी मेरी ।
सजदे में अनिल तुमको भी आना होगा ॥
( ०२ -०९ - १९९९ )
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