हम तमाशा बन गए, उनका तमाशा देख कर ।
बातों ही बातों में मेरा, चाक दामां हो गया ॥
इस कदर वो अंजुमन में, लौटकर आई 'अनिल' ।
देखते ही देखते, रंगीन शामां हो गया ॥
मेरी गुस्ताखी थी लाज़िम, गुफ्तगू करने लगे ।
मुख़्तसर पर आये थे, और राजनामा हो गया ॥
लब्ज़ मुँह से एक न निकला, पर नज़र सब कह गयी ।
मैंने देखा उनका चिलमन, लाल जामां हो गया ॥
हम झुके उनकी कदम बोस़ी, को जाने मुन्तज़र ।
मेरे दिल से उनके दिल का, बायनामा हो गया ॥
मैंने उनको नूर-ए-जन्नत समझ, सिज़दा किया ।
मै मगर उनकी नज़र में, खानशामा हो गया ॥
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