Tuesday, August 23, 2011

हमने थी कसम खायी

हमने थी कसम खायी, तुमसे न मिलेगे ।
गर ख्वाब में मिल जाएँ, तो कोई क्या करे ॥
पीने कि है पाबन्दी, हरगिज न पियेंगे ।
जब खुद ही जाम छलके, तो कोई क्या करे ॥

उनकी ये आरज़ू थी, हम घर न रहेगे ।
जब दिल ही आशियाँ हो, तो कोई क्या करे ॥
अपनी ये तमन्ना थी, कुछ गुफ्तगू करेगे।
चिलमन न उठा शब् भर, तो कोई क्या करे ॥

सोचा था हम न रुसवां, दिलदार को क़रेगे ।
परवान मोहब्बत चढ़ी, तो कोई क्या करे ॥
मालिक मेरे ये कैसी, उलझन में फंस गया ।
उलझन उलझती जाये, तो कोई क्या करे ॥

शिकवा करेगें किस से, ए मेरे हमनशीं ।
जब जिंदगी हो कातिल, तो कोई क्या करे ॥
हमने किया है वादा, उनसे इंतज़ार का ।
गर वो ही रूठ जाये, तो कोई क्या करे ॥

हम दास्ताँ सुनाये जाकर, किसे 'अनिल' ।
जब हम ही दास्ताँ है, तो कोई क्या करे ॥
हमने थी कसम खायी, कि हम कुछ न कहगे ।
आहिस्ता खुल गए लव, तो कोई क्या करे ॥

(०३-०४-२००० )

No comments:

Post a Comment