ह्रदय में टीस सी होती , दिशा में क्यों निशा सोती ।
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥
कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥
कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥
कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥
विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥
लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥
जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥
यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥
उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥
मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी
यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥
कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥
कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥
कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥
विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥
लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥
जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥
यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥
उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥
मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी
यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥
ohhh kitna dard aur man main sawal paida kar gaye apke ye shabd....sach ह्रदय में टीस सी होती hai.....
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