Saturday, August 13, 2011

ह्रदय में टीस सी होती (२०-०७-१९९९)

ह्रदय में टीस सी होती , दिशा में क्यों निशा सोती ।
श्रवण को भेदता क्रंदन, खड़ी ममता विलग रोती ॥

कहाँ खोया मेरा सिंदूर, खोया है कहा दिनकर ।
कहाँ खोया है माँ की, गोद में रणबाकुरा छिप कर ॥

कहीं राखी गिरे हिलकर, भरे सिसकारियाँ बहना ।
मगर रोती हुई बहना, का बस इतना ही है कहना ॥

कहीं ललकार दुश्मन, मारता हो गया मेरा भैया ।
लगा हुँकार अरिमर्दन बना, हुंकारता भैया ॥

विजय के साथ लौटा है , विजय लेकर विजय नारा ।
खड़ी पगडंडियाँ ताके , विजय जिस आँख का तारा ॥

लगा कर शीश पर चन्दन, चढ़ाया शीश का चन्दन ।
तेरा शत कोटि अभिनन्दन, तेरा शत कोटि पग वंदन ॥

जहाँ पुरुषत्व ललकारे , विडारे शत्रु को उस क्षण ।
यहाँ हर उर में गीता है, है पावन भूमि का कण कण ॥

यही गौरव हमारा भाल, भाले की सदृश रहता ।
पुरातन से रचा इतिहास , दुहराता यहाँ रहता ॥

उठाये सैकड़ो हिमगिरी है, अपने नख विशालो पर ।
लिए है सैकड़ो गंगा, नवीनी के रसालो पर ॥

मिटा सिंदूर अपना है लगाती, टीका सिंदूरी ।
उठा तलवार देती, भेजती जा कर कसम पूरी

यहाँ रोती नहीं माएं, पिता को गर्व होता है।
यहाँ का बच्चा बच्चा, खेत में बंदूक बोता है ॥


1 comment:

  1. ohhh kitna dard aur man main sawal paida kar gaye apke ye shabd....sach ह्रदय में टीस सी होती hai.....

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