Saturday, November 27, 2010

लबो से कुछ नहीं कहते नज़र

लबो से कुछ नहीं कहते नज़र सब जान लेती है ।
जो दिल में हो अगर कुछ दोस्ती पहचान लेती है ॥
न खोजो दोस्तों की दोस्ती में तुम कोई मौसम ।
तरन्नुम वो है जो अपना तराना जान लेती है ।।

ये माना दोस्ती पर खूब जुमले है पढ़े तुमने ।
मगर ये दोस्ती है दोस्ती पहचान लेती है ॥
ये वो ज़ज्बा है जिसपे खुद खुदा का नूर होता है ।
अरे! बस दोस्ती ही दोस्ती पर जान देती है ।।

अगर हम दोस्तों की आज़माइश पर उतर आये ।
तो ये तुम जान लो ये दोस्तों की जान लेती है ।।
अगर आती है कोई दोस्तों पर जब मुसीबत तो ।
ये वो है दोस्ती जो अपना सीना तान लेती है ॥

ये वो माँ है जिसे हम अपने आँखों में बसाये है ।
ये वो ममता है जो औरो को बेटा मान लेती है ॥
अरे हम क्या करेगे उनकी आँखों में नमी लाके ।
यही तो दोस्ती है जो मसीहा मान लेती है ॥

3 comments:

  1. लबो से कुछ नहीं कहते नज़र
    लबो से कुछ नहीं कहते नज़र सब जान लेती है ।
    जो दिल में हो अगर कुछ दोस्ती पहचान लेती है ॥

    अच्छी रचना ,बधाई ।

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  2. "लबो से कुछ नहीं कहते नज़र सब जान लेती है ।
    जो दिल में हो अगर कुछ दोस्ती पहचान लेती है ॥"
    खूबसूरत पंक्तियां दोस्ती के नाम।

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  3. ये वो माँ है जिसे हम अपने आँखों में बसाये है ।
    ये वो ममता है जो औरो को बेटा मान लेती है ॥
    अरे हम क्या करेगे उनकी आँखों में नमी लाके ।
    यही तो दोस्ती है जो मसीहा मान लेती है ॥
    वाह बहुत खूबसूरत रचना है। बधाई, आशीर्वाद।

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