Tuesday, November 9, 2010

घटा आकर तेरी जुल्फों

घटा आकर तेरी जुल्फों को कुछ ऐसे सजा जाये ।
कि फूलो की महक लेकर कोई मौसम चला आये ॥
दिशाये देख कर तुमको है अपना रास्ता भूली ।
कि रस्ते कह रह है अब मेरी मंजिल नज़र आये ॥
कि होठो के कमल खिलते रहे मिलता रहे सब कुछ ।
वो सारे ख्वाब हो पूरे जो ख्वाबो में नज़र आये ॥
मुबारक हो तुम्हे मौसम गुलाबी आ रहा है जो ।
कि हर मंजिल तुमाहरे खुद कदम छूने चली आये॥
मुझे कुछ भी नहीं मालूम कि होता है कहा सूरज ।
मगर तपते हुए होठो पे वो सूरज नज़र आये ॥
नज़र उठने कि बाते हो नज़र गिरने कि बाते हो।
न उठती है न गिरती है ये नज़रे फिर कहा जाये ॥

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