जब से इन्सान जज्बातों को समझने लगा है तबसे उसकी परेसानिया और बढ गयी है । कभी वो हँसता है , कभी रोता है , कभी गाता है । कभी किसी बात को दिल से लगा लेता है और कभी किसी बात को हवा में उड़ा देता है । वैसे मुझे ये लेख लिखने नहीं आते फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज़ है । अगर कोई अपने आप को रोते हुए आईने में देख ले तो वो कभी नहीं रोयेगा क्योकि जो लाखो करोड़ो का नुकसान उन मोतियों से होता है उससे देश में फिर से आर्थिक मंदी आ सकती है और चेहरा खराब होता है वो अलग । आप को पता है चांदनी रात में समुन्दर कि लहरे खिलखिलाती हुई जब उछलती है तो ऐसा लगता है कि वो अभी चाँद को चूम लेगी लेकिन वो फिर जमीं पर गिर पड़ती है और फिर से दुगनी ताकत से बढती है और लगातार चाँद को छूने कि कोशिश करती है ।
बचपन में मुझे एक कविता पढाई गयी थी जिसमे बताया गया था कि जब सूरज निकलता है तो कमल खिलता है और उसके डूबते ही कमल मुरझा जाता है । मै हमेशा ये सोचा करता कि लाखो ,करोड़ो मील दूर सूरज से कमल का क्या लेना देना । ये उलझन अभी ख़तम नहीं हुई कि एक और कविता आ गयी जिसमे टीचर जी ने बताया कि कुमोदिनी (एक फूल जो पानी में होता है ) चाँद के निकलने का इंतजार करती है और चाँद के निकलते ही वो मुसुकुरा कर खिल उठती है । मेरी एक और मुसीबत बढ गयी कि ये चाँद और सूरज क्या क्या गुल खिलाते है ।खैर चाँद के बारे में बहुत सुना था कि वो हमारी धरती का ही एक हिस्सा है लेकिन एक जगह किसी को ये कहते हुए सुना कि कि कोई चाँद जैसा खुबसूरत है मै और परेशान और मै किसी से कुछ पूछ भी नहीं सकता कि ये क्या है ।
शाहजहाँ ने मुमताज़ के लिए एक ताजमहल बनवा दिया । किसी को रहने के लिए छत नसीब नहीं होती तो कोई मरने के बात भी ताजमहल में जिंदा रहता है । मेरे ख्याल हमेशा अलग रहते थे । फिर एक बार ताजमहल देखने का मौका मिला मै और मैंने देखा वाकई ताज महल बहुत खुबसूरत है। मै अपनी फिलोसफी थोड़ी देर के लिए भूल गया । वक़्त गुज़रता गया और सब कुछ वैसा ही रहा कुछ भी नहीं बदला चाँद का डूबना सूरज का निकलना सब कुछ, हां बदला तो मेरे सोचने का तरीका । मेरी समझ में आ चुका था ये सब और कुछ नहीं जज़्बात है जो इंसान को कमज़ोर और ताकतवर बनाते है । लेकिन मुझे सीखने को भी मिला कि जब प्रकृति अपने नियम नहीं बदलती तो हम क्यों । आदते भी वही बदली जाती है जो ख़राब होती है । अच्छी आदतों को तो सीने से लगा कर रखा जाता है ।
कोई कुछ भी कहे तो क्या हम हसना छोड़ देगे , जीना छोड़ देगे , अपने को बादल देगे ये तो गलत है । मेरी आदतों से किसी नुकसान न पहुचे और क्या । अगर मै लेखक होता तो दो चार मुहावरे , दोहे लिखता तो ये एक लेख हो जाता । हम सब अपनी ज़िन्दगी का सबसे कीमती वक़्त एक साथ बिता रहे है । सुबह घर से निकलना , रात में घर पहुचना और सुबह फिर वही । जिंदगी एक चलती फिरती मशीन हो गयी । कोई परेशान होता है तो कोई किसी को देख कर परेशां होता है । इतनी भाग दौड़ कि जिंदगी में सुक्र कीजिये कि अभी भी जज़्बात जिंदा है । वरना जज़्बात से अलग इंसान ही कहाँ जिंदा है।
कोई हँसना छोडना चाहता है तो कोई रोना । कोई हसने के लिए लाफिंग क्लब जाता है तो कोई रोने के लिए कमरे के अन्दर । अजीब दुनिया है । जिसके पास सब कुछ होता है डॉक्टर उससे न खाने के लिए कहते है और जिस के पास कुछ नहीं है उससे कहते है वो सब चीज़े खावो जो वो खरीद नहीं सकता ।
चलिए थोडा सा और लिख देता हूँ -
ये दौलत मुसुकराने की बचावोगे तो कम होगी ।
नज़र जिस दम मिलावोगे नज़र है ये तो नम होगी ॥
आगे फिर कभी लिखेगे -----
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