Friday, April 2, 2010

न जाने क्यूँ

ज़मी से आसमा तक हमने जब नज़रे उठाई है।
कई नजरो ने तब नज़रे चुराई थी न जाने क्यूँ ॥
मै अपने होश कि कुछ तो दवा करता मगर कैसे ।
ज़रा सा हौसला माँगा था मैंने उससे जाने क्यूँ ॥
कभी सीधे कदम पड़ते नहीं थे अपनी राहों पे ।
कि एक दम रुक था देर थक उस दम न जाने क्यूँ ॥
न जाने क्यूँ मेरी नज़रे उसे ही ढूढती रहती ।
कि उसका नाम लेने पर है कुछ होता न जाने क्यूँ ॥
न जाने क्यूँ मै अपने आप से कुछ बेखबर सा हूँ ।
मै उसकी हर खबर मालूम रखता हूँ न जाने क्यूँ ॥
खुदा मेरा सुकूं फिर से मुझे दे दे ये ख्वाहिस है ।
वो मेरी जिंदगी लेकर गयी है पर न जाने क्यूँ ।।
मुझे आदत नहीं है कुछ भी अपने पास रकने की ।
वो एक पल फिर ठहर जाये मैं चाहूँ पर न जाने क्यूँ ॥

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