Sunday, April 24, 2011

जब भी मै कुछ बोलता

जब भी मै कुछ बोलता हू चुप करा देते है वो ।
इस तरह हर बार मै कुछ बोल ही पता नहीं ॥
देखता जाता हू उनकी नज़र रूकती है कहा ।
चाहता हू कुछ कहू मुह खोल ही पता नहीं ॥

जानते है वो मगर अंजान हो जाते है क्यों ।
छुप गए है और मै अब ढूढ़ ही पता नहीं ॥
चाहता हू मै कहू कुछ होठ हिलते ही नहीं ।
मुस्कुराते है मगर क्यों जान ही पता नहीं ॥

कोई कह दे उनसे की जुल्फे हटा ले अब जरा ।
क्या करेगी ये मुझे कुछ तो समझ आता नहीं ॥
अब नज़र उठती नहीं है देख कर उनको 'अनिल' ।
चाहता हू बोल दू पर कुछ कहा जाता नहीं ॥

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