Saturday, April 16, 2011

छोड़िये उलझने

छोड़िये उलझने, आज की आज पर ।
कुछ इधर देखिये, जुल्फ सुलझाइए ॥
पर नज़र उलझती है, तो उलझी रहे ।
छोड़िये, अब जो उलझी है उलझाइये ॥

कुछ शमा बांधिए, कुछ नए गीत हो ।
आ गए है तो फिर, कुछ ठहर जाइये ॥
साज को देखिये, गीत को साथ ले ।
गीत क्या चीज है, गीतिका गाइए ॥

दिल में बाते बहुत है, मगर क्या कहू ।
और कैसे कहू, कुछ तो बतलाइए ॥
रंगे खुशबु गुलाबो, की मिलती रहे ।
सब के चेहरे पे है, हर्ष दिखलाइये ॥

दिल मचलते रहे, यू ही मिलते रहे ।
फूल खिलते रहे, ऐसा कुछ लाइए ॥
बात कुछ भी रहे , साथ कुछ न रहे ।
हर्ष ले जाइये , हर्ष दे जाइये .......... ।

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भाव ....

    शमा को समां कर दें ...शाम का मतलब मोमबत्ती होता है ...

    अच्छी प्रस्तुति

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