Saturday, November 27, 2010

लबो से कुछ नहीं कहते नज़र

लबो से कुछ नहीं कहते नज़र सब जान लेती है ।
जो दिल में हो अगर कुछ दोस्ती पहचान लेती है ॥
न खोजो दोस्तों की दोस्ती में तुम कोई मौसम ।
तरन्नुम वो है जो अपना तराना जान लेती है ।।

ये माना दोस्ती पर खूब जुमले है पढ़े तुमने ।
मगर ये दोस्ती है दोस्ती पहचान लेती है ॥
ये वो ज़ज्बा है जिसपे खुद खुदा का नूर होता है ।
अरे! बस दोस्ती ही दोस्ती पर जान देती है ।।

अगर हम दोस्तों की आज़माइश पर उतर आये ।
तो ये तुम जान लो ये दोस्तों की जान लेती है ।।
अगर आती है कोई दोस्तों पर जब मुसीबत तो ।
ये वो है दोस्ती जो अपना सीना तान लेती है ॥

ये वो माँ है जिसे हम अपने आँखों में बसाये है ।
ये वो ममता है जो औरो को बेटा मान लेती है ॥
अरे हम क्या करेगे उनकी आँखों में नमी लाके ।
यही तो दोस्ती है जो मसीहा मान लेती है ॥

Sunday, November 14, 2010

मुझे है याद वो दिन

मुझे है याद वो दिन जब कि हम झंडा उठाते थे ।
कि वन्दे मातरम गाते हुवे स्कूल जाते थे ॥
मुझे है याद वो सारे सबक जो भी पढ़े थे तब ।
मगर उनको न देखू तो सबक सब भूल जाते थे ॥
अगर मुझको पता चलता कि वो छुट्टी पे बैठे है ।
तो सच मानो कि उस दिन हम भी गोला मार जाते थे ॥
वो चाचा का जन्म दिन था नहीं मै आज तक भूला ।
कि उस अवसर पे हम घर से गुलाबी फूल लाते थे ॥
उन्हें हम फेकते थे उनको गालो पर न जाने क्यों ।
कि उनके देखने पर हम बहुत कम मुस्कुराते थे ॥
न जाने क्या लड़कपन था न जाने क्या थी तब मर्ज़ी ।
कि हम झोले में अपने एक गुडिया लेके जाते थे ॥
दिखा कर उसको हम अनजान से कुछ देर हो जाते ।
मगर फिर से वही हम खेल दोहराते ही जाते थे ॥
वो उनको इस तरह छूना कि कुछ भी देख न पाए ।
न जाने क्यों उठा कर उनकी तख्ती भाग जाते थे ॥
वो चोटी खीच कर एकदम से उनके सामने आना ।
कि उसके सर हिलाने पर नहीं फुले समाते थे ॥
क्रमशा ......

Tuesday, November 9, 2010

घटा आकर तेरी जुल्फों

घटा आकर तेरी जुल्फों को कुछ ऐसे सजा जाये ।
कि फूलो की महक लेकर कोई मौसम चला आये ॥
दिशाये देख कर तुमको है अपना रास्ता भूली ।
कि रस्ते कह रह है अब मेरी मंजिल नज़र आये ॥
कि होठो के कमल खिलते रहे मिलता रहे सब कुछ ।
वो सारे ख्वाब हो पूरे जो ख्वाबो में नज़र आये ॥
मुबारक हो तुम्हे मौसम गुलाबी आ रहा है जो ।
कि हर मंजिल तुमाहरे खुद कदम छूने चली आये॥
मुझे कुछ भी नहीं मालूम कि होता है कहा सूरज ।
मगर तपते हुए होठो पे वो सूरज नज़र आये ॥
नज़र उठने कि बाते हो नज़र गिरने कि बाते हो।
न उठती है न गिरती है ये नज़रे फिर कहा जाये ॥

Wednesday, November 3, 2010

इस दीवाली दीपों में अरमान जलायेगे
हर्ष चाहे तो फिर कैसे हर्ष मनायेगे
दीवाली में तोहफों की बाते बेमानी है
गम है की अब कैसे खील बतासे आयेगे
जाने को बेचैन बहुत पर जेबे ख़ाली है
इस दीवाली में हम घर को कैसे जायेगे
इन बातो से क्या होता है बाते ही तो है
आती है हर साल दीवाली ख्वाब ये लायेगे
कमरों में अंधियारे होगे दीप कहा होगे
हाथो को आँखों पर रखकर लेसको गायेगे
लक्ष्मी से लक्ष्मी की बाते कैसे होगी अब
जो होता है अच्छा है दिल को समझायेगे

** शुभ दीपावली, सुखमय दीपावली, खुशमय दीपावली, स्वस्थ दीपावली, हर्षित दीपावली, संघर्षित दीपावली, मंगलमय दीपावली, प्रकाशित दीपावली, आह्लादित दीपावली, व्यवस्थित दीपावली , सुरक्षित दीपावली । आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामना **