Sunday, October 24, 2010

इस दीवाली दीपों में

इस दीवाली दीपों में अरमान जलायेगे
हर्ष चाहे तो फिर कैसे हर्ष मनायेगे
दीवाली में तोहफों की बाते बेमानी है
गम है की अब कैसे खील बतासे आयेगे
चपरासी के कामो को भी निपटा लेते है
पर हम चपरासी की भी तनखाह पायेगे ।।
जाने को बेचैन बहुत पर जेबे ख़ाली है
इस दीवाली में हम घर को कैसे जायेगे
इन बातो से क्या होता है बाते ही तो है
आती है हर साल दीवाली ख्वाब ये लायेगे
कमरों में अंधियारे होगे दीप कहा होगे
हाथो को आँखों पर रखकर लेसको गायेगे
लक्ष्मी से लक्ष्मी की बाते कैसे होगी अब
जो होता है अच्छा है दिल को समझायेगे

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