Sunday, May 16, 2010

जुबां हिलती नहीं खामोश

जुबां हिलती नहीं खामोश लव कुछ कह नहीं पाते

मगर नज़रे झुकाने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥

जहाँ मिलती कोई मूरत उसे हम पूज लेते है ।

की सिजदे का कोई हमतो बहाना दूढ़ लेते है ॥

किसे फुर्सत यहाँ मिलती है दिल से मुस्कुराने की ।

मगर हर वक़्त रोने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥

तमन्ना है जिन्हें उस दौर का थोडा मज़ा ले ले ।

कि हम तो मुसुकुराने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥

नज़र मिलती नहीं फिर भी नज़र सब देखती तो है

जो देखा था कभी हम वो ज़माना ढूढ़ लेते है ॥

ये दरिया है नहीं रूकती रवानी बढती जाती है ।

मगर हम है अपना आशियानां ढूढ़ लेते है ॥

कही तूफान रुख न मोड़ दे अपने सफीने का ।

कि हम तो बस अभी से आबोदाना ढूढ़ लेते है ॥

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