जुबां हिलती नहीं खामोश लव कुछ कह नहीं पाते
मगर नज़रे झुकाने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
जहाँ मिलती कोई मूरत उसे हम पूज लेते है ।
की सिजदे का कोई हमतो बहाना दूढ़ लेते है ॥
किसे फुर्सत यहाँ मिलती है दिल से मुस्कुराने की ।
मगर हर वक़्त रोने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
तमन्ना है जिन्हें उस दौर का थोडा मज़ा ले ले ।
कि हम तो मुसुकुराने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
नज़र मिलती नहीं फिर भी नज़र सब देखती तो है
जो देखा था कभी हम वो ज़माना ढूढ़ लेते है ॥
ये दरिया है नहीं रूकती रवानी बढती जाती है ।
मगर हम है अपना आशियानां ढूढ़ लेते है ॥
कही तूफान रुख न मोड़ दे अपने सफीने का ।
कि हम तो बस अभी से आबोदाना ढूढ़ लेते है ॥
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