Sunday, October 4, 2009

हम भटकते रहे आज तक जाने क्यूँ

हम भटकते रहे आज तक जाने क्यूँ ।
आज नज़रे उठाई खुदा मिल गया ॥
ऐसा था नूर चेहरे पे फैला हुआ ।
जैसे जीने का इक हौसला मिल गया ॥
चंद लम्हे चुरा लीजिये मौत से ।
हो सके तो ये इक काम कर दीजिये ॥
तुम को फूलों की चाहत बहुत ठीक है ।
मेरे सीने में काटों को भर दीजिये ॥
एक पल में हजारो जन्म जी लिए ।
जिंदगी से मुझे आज क्या कम है ॥
आरजू अब नही है किसी बात की ।
कितना प्यारा सा ज़न्नत पैगाम है ..

2 comments:

  1. आरजू अब नही है किसी बात की ।
    कितना प्यारा सा ज़न्नत पैगाम है ..

    bahut achha likha hai

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  2. तुम को फूलों की चाहत बहुत ठीक है ।
    मेरे सीने में काटों को भर दीजिये ॥

    Bahut Khoob...

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