ज़रा से लब खुले रखते ज़रा सा मुस्करा लेते ॥
कि कुछ जुल्फे बिखर जातीं तेरे रंगीन गालो पे ।
ज़रा नज़रे उठा कर मेरी नजरो से मिला लेते ॥
क़यामत कि फिकर किसको मुझे फिर होश में लावो ।
मेरे हाथों को अपने हाथ में कुछ दम उठा लेते ॥
यकी गर हो न तुमको आईने से पूछ लो जाकर ।
अगर तुम बोलने देती तो हम सब कुछ बता देते ॥
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