Sunday, February 28, 2010

बड़ी मुद्दत से जो चेहरा बचाए थे गुलालो से ।
खुली जुल्फों से झटके थे कई लम्हे उजालो के ॥
बड़े मशहूर हो कर हमने खेली थी कभी होली ।
वो होली फिर कहीं आये तो होली याद रक्खेगे ॥
महक आएगी जुल्फों से अबीरों की गुलालों की ।
वो मिल जाये कहीं होली तो होली याद रक्खेगे
जो जलती है फ़ना होती है जिसका दम निकलता है
वो होली सामने आये तो होली याद रक्खेगे ॥
सजा लेंगे तेरी जुल्फों में मचले जो सरारे है ।
झुका कर सर चले आयगे होली याद रक्खेगे॥

1 comment:

  1. आपको सपरिवार होली की बधाई.nice

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