Sunday, August 14, 2011

माँ का श्रृंगार

माँग में भरना धूल हिंद की, जिसमे रवि की लाली हो ।
घुघराले बालों में बेंदी, चाँद सितारा वाली हो ॥
माथे पे बिंदिया सूरज की, जिसमे चिन्ह शेर का हो ।
आँखों में पुष्कर तीरथ और, वक्ष्स्तल अजमेर का हो ॥

काबा हो जिसकी पलकों पर, जिसका ह्रदय शिवाला हो ।
वाणी गीता सी पवन हो, हाथ में मणि की माला हो ॥
बनी तिरंगे की चूनर, और सिर पर मुकुट गगन का हो ।
भगत सिंग सा बासंती तन, जिसमे रंग लगन का हो ॥

चोली में चरखा बनवाना, जिस पर पड़ा दुशाला हो ।
ताजमहल से सुन्दर तन पर, कपड़ा खादी वाला हो ॥
चक्र करधनी में बनवाना, कर में विजय तिरंगा हो ।
धवल वेग जिसका, जिसकी बाहों में पवन गंगा हो ॥

आँचल में भर हिंदी सागर, पायल पटना की लाना ।
वीर जवाहर का रंग भी, तुम सभी जगह पर भरवाना ॥
आँखों में झरिया का काजल, नथ चित्तौड़ किले की हो ।
शुभ्र शीश पर नग हिमगिरि, चूड़ामणि बंग जिले की हो ॥

घंघरा गाँधी वाला जिसमे, वन्देमात्रम बूटा हो ।
लाल बहादुर का रंग भरना, कोई भाग न छूटा हो ॥
सारी बनी बनारस की और, ज़री हैदराबादी हो ।
हर धागा जिसका बतलाता, सौ करोड़ आबादी हो ॥

अर्जुन सी हुँकार, तांडव झासी की रानी जैसा ।
रक्षक जिसके वीर शिवाजी, उस सरहद को डर कैसा ॥
नलवे का रंग गहरा कर, संगीन थमाना बाहों में ।
फूल तोड़ लखनऊ शहर के, बिखरा देना राहों में ॥

कर श्रृंगार सजाकर उसको, कर देना तुम सिंह सवार।
तब जाकर कहलाएगी वो, भारत भू का शुभ अवतार ॥

(१५ अगस्त १९९९ - दिन रविवार )





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