Sunday, April 25, 2010

जब से इन्सान जज्बातों को समझने लगा है

जब से इन्सान जज्बातों को समझने लगा है तबसे उसकी परेसानिया और बढ गयी है कभी वो हँसता है , कभी रोता है , कभी गाता है कभी किसी बात को दिल से लगा लेता है और कभी किसी बात को हवा में उड़ा देता है वैसे मुझे ये लेख लिखने नहीं आते फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज़ है अगर कोई अपने आप को रोते हुए आईने में देख ले तो वो कभी नहीं रोयेगा क्योकि जो लाखो करोड़ो का नुकसान उन मोतियों से होता है उससे देश में फिर से आर्थिक मंदी सकती है और चेहरा खराब होता है वो अलग आप को पता है चांदनी रात में समुन्दर कि लहरे खिलखिलाती हुई जब उछलती है तो ऐसा लगता है कि वो अभी चाँद को चूम लेगी लेकिन वो फिर जमीं पर गिर पड़ती है और फिर से दुगनी ताकत से बढती है और लगातार चाँद को छूने कि कोशिश करती है

बचपन में मुझे एक कविता पढाई गयी थी जिसमे बताया गया था कि जब सूरज निकलता है तो कमल खिलता है और उसके डूबते ही कमल मुरझा जाता है मै हमेशा ये सोचा करता कि लाखो ,करोड़ो मील दूर सूरज से कमल का क्या लेना देना ये उलझन अभी ख़तम नहीं हुई कि एक और कविता गयी जिसमे टीचर जी ने बताया कि कुमोदिनी (एक फूल जो पानी में होता है ) चाँद के निकलने का इंतजार करती है और चाँद के निकलते ही वो मुसुकुरा कर खिल उठती है मेरी एक और मुसीबत बढ गयी कि ये चाँद और सूरज क्या क्या गुल खिलाते है खैर चाँद के बारे में बहुत सुना था कि वो हमारी धरती का ही एक हिस्सा है लेकिन एक जगह किसी को ये कहते हुए सुना कि कि कोई चाँद जैसा खुबसूरत है मै और परेशान और मै किसी से कुछ पूछ भी नहीं सकता कि ये क्या है

शाहजहाँ ने मुमताज़ के लिए एक ताजमहल बनवा दिया किसी को रहने के लिए छत नसीब नहीं होती तो कोई मरने के बात भी ताजमहल में जिंदा रहता है मेरे ख्याल हमेशा अलग रहते थे फिर एक बार ताजमहल देखने का मौका मिला मै और मैंने देखा वाकई ताज महल बहुत खुबसूरत हैमै अपनी फिलोसफी थोड़ी देर के लिए भूल गया वक़्त गुज़रता गया और सब कुछ वैसा ही रहा कुछ भी नहीं बदला चाँद का डूबना सूरज का निकलना सब कुछ, हां बदला तो मेरे सोचने का तरीका मेरी समझ में चुका था ये सब और कुछ नहीं जज़्बात है जो इंसान को कमज़ोर और ताकतवर बनाते है लेकिन मुझे सीखने को भी मिला कि जब प्रकृति अपने नियम नहीं बदलती तो हम क्यों आदते भी वही बदली जाती है जो ख़राब होती है अच्छी आदतों को तो सीने से लगा कर रखा जाता है

कोई कुछ भी कहे तो क्या हम हसना छोड़ देगे , जीना छोड़ देगे , अपने को बादल देगे ये तो गलत है मेरी आदतों से किसी नुकसान पहुचे और क्या अगर मै लेखक होता तो दो चार मुहावरे , दोहे लिखता तो ये एक लेख हो जाताहम सब अपनी ज़िन्दगी का सबसे कीमती वक़्त एक साथ बिता रहे हैसुबह घर से निकलना , रात में घर पहुचना और सुबह फिर वहीजिंदगी एक चलती फिरती मशीन हो गयीकोई परेशान होता है तो कोई किसी को देख कर परेशां होता हैइतनी भाग दौड़ कि जिंदगी में सुक्र कीजिये कि अभी भी जज़्बात जिंदा हैवरना जज़्बात से अलग इंसान ही कहाँ जिंदा है।

कोई हँसना छोडना चाहता है तो कोई रोना । कोई हसने के लिए लाफिंग क्लब जाता है तो कोई रोने के लिए कमरे के अन्दर । अजीब दुनिया है । जिसके पास सब कुछ होता है डॉक्टर उससे न खाने के लिए कहते है और जिस के पास कुछ नहीं है उससे कहते है वो सब चीज़े खावो जो वो खरीद नहीं सकता ।

चलिए थोडा सा और लिख देता हूँ -
ये
दौलत मुसुकराने की बचावोगे तो कम होगी ।
नज़र जिस दम मिलावोगे नज़र है ये तो नम होगी

आगे फिर कभी लिखेगे -----



Saturday, April 10, 2010

फिजा लेस्को खिज़ा लेस्को

फिजा लेस्को खिज़ा लेस्को जो पाई वो सजा लेस्को ।
सुबह लेस्को सहर लेस्को ज़रा रुक ले ठहर लेस्को ॥
ये तन लेस्को ये मन लेस्को ये हैरी का चमन लेस्को ।
ज़मी लेस्को गगन लेस्को मेरा तो प्राण मन लेस्को ॥
अनिल लेस्को कि निल लेस्को जो मिलते है वो दिल लेस्को ।
अज़ब लेस्को गज़ब लेस्को जो बोलो तो है सब लेस्को ॥
इधर लेस्को उधर लेस्को जो लम्बी वो डगर लेस्को।
जो धीरू दम दिखा देते तो रुक जाती डगर लेस्को ॥
जो लिख डाला वो ख़त लेस्को सिराज़ों का है मत लेस्को ।
ये डब्बा है बिना इंजन का ले डाला टिकेट लेस्को ॥
खता लेस्को पता लेस्को मै क्या कह दूं बता लेस्को ।
अगर दस्तक कोई देगा मेरे घर का पता लेस्को ॥
क्रमश :

तमन्ना फिर मेरी मचली कि

तमन्ना फिर मेरी मचली कि वो चिलमन उठा देते ।
ज़रा से लब खुले रखते ज़रा सा मुस्करा लेते ॥
कि कुछ जुल्फे बिखर जातीं तेरे रंगीन गालो पे ।
ज़रा नज़रे उठा कर मेरी नजरो से मिला लेते ॥
क़यामत कि फिकर किसको मुझे फिर होश में लावो ।
मेरे हाथों को अपने हाथ में कुछ दम उठा लेते ॥
यकी गर हो न तुमको आईने से पूछ लो जाकर ।
अगर तुम बोलने देती तो हम सब कुछ बता देते ॥


Friday, April 2, 2010

न जाने क्यूँ

ज़मी से आसमा तक हमने जब नज़रे उठाई है।
कई नजरो ने तब नज़रे चुराई थी न जाने क्यूँ ॥
मै अपने होश कि कुछ तो दवा करता मगर कैसे ।
ज़रा सा हौसला माँगा था मैंने उससे जाने क्यूँ ॥
कभी सीधे कदम पड़ते नहीं थे अपनी राहों पे ।
कि एक दम रुक था देर थक उस दम न जाने क्यूँ ॥
न जाने क्यूँ मेरी नज़रे उसे ही ढूढती रहती ।
कि उसका नाम लेने पर है कुछ होता न जाने क्यूँ ॥
न जाने क्यूँ मै अपने आप से कुछ बेखबर सा हूँ ।
मै उसकी हर खबर मालूम रखता हूँ न जाने क्यूँ ॥
खुदा मेरा सुकूं फिर से मुझे दे दे ये ख्वाहिस है ।
वो मेरी जिंदगी लेकर गयी है पर न जाने क्यूँ ।।
मुझे आदत नहीं है कुछ भी अपने पास रकने की ।
वो एक पल फिर ठहर जाये मैं चाहूँ पर न जाने क्यूँ ॥