Sunday, February 28, 2010

बड़ी मुद्दत से जो चेहरा बचाए थे गुलालो से ।
खुली जुल्फों से झटके थे कई लम्हे उजालो के ॥
बड़े मशहूर हो कर हमने खेली थी कभी होली ।
वो होली फिर कहीं आये तो होली याद रक्खेगे ॥
महक आएगी जुल्फों से अबीरों की गुलालों की ।
वो मिल जाये कहीं होली तो होली याद रक्खेगे
जो जलती है फ़ना होती है जिसका दम निकलता है
वो होली सामने आये तो होली याद रक्खेगे ॥
सजा लेंगे तेरी जुल्फों में मचले जो सरारे है ।
झुका कर सर चले आयगे होली याद रक्खेगे॥

Sunday, February 21, 2010

बड़े मासूम होकर धूप में दिन भर खड़े रहते

तो बिस्मिल याद आते थे जवाहर याद आये थे ।
कि जाकर हम कभी स्कूल जब झंडा उठाये थे ॥
बड़े मासूम होकर धूप में दिन भर खड़े रहते ।
कि लड्डू एक पाने पर बहुत हम मुस्कराए थे ॥
है मुझको याद आता मास्टरजी का सबक इस दम ।
कि उस दम मार खाने पर बहुत आशुं बहाए थे ॥
हूँ हँसता सोच कर इस दम कि क्या वो दौर था अपना।
कि कुछ कार्टून हमने बोर्ड पर उनके बनाये थे ॥
वो मिलती जब कभी कहती है मेरी चीज वो दे दो ।
कि उसके हाथ कि दो चूड़ियाँ हम तोड़ लाये थे ॥
मगर है याद मुझको आज तक वो लंच का डिब्बा ।
कि मैंने उसके डब्बे के पराठे रोज खाए थे ॥न जाने आज क्या है हो गया जो आँख भर आई ।
की वो एक दौर था जब देर तक हम मुस्कुराये थे ॥

----------------------------------

बचपन के दिन

वो बिस्मिल याद आते थे जवाहर याद आते थे ।
कि हम स्कूल जाकर जब वहाँ झंडा उठाते थे ॥
बड़े मासूम होकर, धूप में दिन भर खड़े रहते ।
कि लड्डू एक पाने पर बहुत ताली बजाते थे ॥

है मुझको याद आता मास्टरजी का सबक इस दम ।
कि उस दम मार खाने पर बहुत आंशू बहाते थे ॥
हूँ हँसता सोच कर क्या दौर था कैसी शरारत थी ।
कि क्यों  कार्टून हम उस बोर्ड पर, अक्सर बनाते थे ॥

वो जब मिलती है कहती है, कि मेरी चीज वो दे दो ।
कि उसके हाथ कि कुछ चूड़ियाँ हम तोड़ लाते थे ॥
है मुझको याद उसके लंच का डिब्बा चुरा लेना  ।
कि उसके हाथ से छीने पराठे रोज खाते थे ॥

न जाने आज क्या है हो गया क्यूँ  आँख भर आई ।
की वो एक दौर था जब देर तक हम मुस्कुराते थे ॥

Sunday, February 14, 2010

सूरज निकलता है तो चाँद छिप जाता है

सूरज निकलता है तो चाँद छिप जाता है ।
रात बीतती जाती है तो सुबह आता है ॥
ये तो दुनियां का दस्तूर है ए अनिल ।
कोई रोता है तो कोई मुस्कराता है ॥
पतझर के बाद एक बसंत जरूर आता है ।
पर मेरे पास पतझर आ कर ठहर जाता है ॥
मै टूटे हुए पत्ते की तरह उड़ता रहता हूँ इधर ।
उधर वक़्त मेरे हाथ से निकल जाता है ॥
मेरी उम्मीद से आगे भी एक दुनिया है ।
मेरी उम्मीद का दामन भी कम हो जाता है ॥
लोग कहते है प्यार के लिए वक़्त कुछ नहीं होता ।
फिर हर साल वेलेन्टएन डे क्यों आता है ॥
पहले तो पंद्रह अगस्त छब्बीस जनवरी मनाते थे ।
पर आज हर आदमी वेलेंटाएन डे मनाता है ॥
दिल में हज़ार बाते हज़ार सपने है लेकिन ।
उन बातों के लिए कभी वक़्त कहाँ आता है ॥

Sunday, February 7, 2010

पुतले सजेगे गलियो में बाज़ार न बिकेगा

पुतले सजेगे गलियो में बाज़ार न बिकेगा ।
सिक्को के लिए अपना एतबार न बिकेगा ॥
तुम कुछ भी कहो दोस्तों की बात भी सुनो ।
इस दोस्ती के बदले वो प्यार न बिकेगा ॥
हमको है अपना ये घर दोनों जहाँ से प्यारा ।
पर घर के लिए उसका संसार न बिकेगा ॥
दिलवर रहो दिलो में वो ही जगह है अच्छी।
बिकने दो मुझे पर मेरा अधिकार न बिकेगा ॥
मतलब परस्त लोगों से हो दूर है अच्छा ।
कुरबानियो का कोई भी मजार न बिकेगा ॥
गर तुमने आज मुझको रुसवां किया यहाँ पर ।
फिर देखना अब कोई तलबगार न बिकेगा ॥