Saturday, November 28, 2009

नज़र को क्यूँ उठाते हो नज़र को क्यो गिरते हो

नज़र को क्यूँ उठाते हो नज़र को क्यो गिराते हो ।
क्या कोई चीज़ ऐसी है जिसे तुम तौले जाते हो ॥
लवो पर लव सजाए हो ये ख़ामोशी कहाँ की है ।
ज़रा सी बात को न जाने क्यूँ दिल से लगाते हो ॥
बहुत दिन हो गए हमने नही देखी हँसी सूरत ।
न जाने मुस्कुराने में क्यूँ कंजूसी दिखाते हो ॥

Friday, November 6, 2009

किसको फुर्सत है दिल लगाने की

किसको फुर्सत है दिल लगाने की ।
किसको ख्वाहिश है मुस्कुराने की ॥
तुम न आवोगे मगर जाने क्यों ।
मै राह तकता हूँ तेरी आने की ॥
एक था वक्त खुशी नाचती थी चेहरे पे ।
अब शायद लग गई नज़र मुझे ज़माने की ।।
तरसता हूँ की कोई हंस के बात ही कर ले ।
ढूढता हूँ कोई वज़ह मै मुस्कराने की ॥
अपनी नज़रे भी खुली छोड़ दी मैंने अब ।
शायद लम्हा कोई ले आए ख़बर आने की ॥
अब बेजार और बेजान हुए जाते है ।
उनको जिद मेरी हिम्मत को आजमाने की ॥